रूस-यूक्रेन युद्ध से बहुत हुआ नुकसान, अब भारत के लिए ये राहत की बात!
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रूस और यूक्रेन (Russia Ukraine War) युद्ध का असर भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) पर भी देखने को मिला है. अप्रैल के महीने में विश्व व्यापार संगठन (WTO) ने रूस-यूक्रेन युद्ध के प्रभाव के कारण इस वर्ष वैश्विक व्यापार वृद्धि के अपने पूर्वानुमान को 4.7 प्रतिशत से घटाकर 3 प्रतिशत कर दिया था.
रूस और यूक्रेन (Russia Ukraine War) के बीच जारी जंग के परिणाम आर्थिक रूप से दुनिया के लिए इतने व्यापक होंगे, इसका अनुमान लगाना मुश्किल था. दोनों देशों के बीच तीन महीने से अधिक समय से जारी युद्ध ने ग्लोबल व्यापार (Global Trade) को काफी प्रभावित किया है.
भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) पर भी इस जंग का असर देखने को मिला है. अप्रैल के महीने में विश्व व्यापार संगठन (WTO) ने रूस-यूक्रेन युद्ध के प्रभाव के कारण इस वर्ष वैश्विक व्यापार वृद्धि के अपने पूर्वानुमान को 4.7 प्रतिशत से घटाकर 3 प्रतिशत कर दिया था. इसके साथ ही विश्व व्यापार संगठन ने संभावित खाद्य संकट की चेतावनी भी दी थी.
देश में बढ़ी थी गेहूं के प्रॉडक्ट की कीमत एस एंड पी ग्लोबल प्लैट्स के सर्वेक्षण के मुताबिक, रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच भारत में गेहूं का उत्पादन वर्ष 2021-22 में 110 मिलियन मीट्रिक टन तक बढ़ने की उम्मीद है. एक साल पहले ये आंकड़ा 108 मिलियन मीट्रिक टन था.
बता दें कि रूस दुनिया का शीर्ष गेहूं निर्यातक है. वहीं यूक्रेन इस मामले में पांचवें स्थान पर है. महंगाई और कम गेहूं के उत्पादन के अनुमान के चलते भारत सरकार ने गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था. भारत सरकार ने देश की समग्र खाद्य सुरक्षा के प्रबंधन को देखते हुए ये कदम उठाया था.
देश में गेहूं के स्टॉक के साथ-साथ उत्पादन में गिरावट की वजह विशेषज्ञ कीमतों में हुई बढ़ोतरी को बता रहे हैं. देश में गेहूं के आटे के साथ बेकरी उत्पादों, बिस्किट और ब्रेड की कीमतों में भी हाल के महीनों में बढ़ोतरी दर्ज की गई है. हालांकि, गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने और खरीद बढ़ाने के फैसले से गेहूं प्रॉडक्ट्स की कीमतों में कुछ नरमी देखने को मिली है.
खाद्य तेल को लेकर संकट भारत को अपने सूरजमुखी के तेल का 90 फीसदी से अधिक यूक्रेन और रूस से प्राप्त होता है. मार्च 2021 के वित्तीय वर्ष में भारत ने लगभग 13.35 मिलियन टन खाद्य तेलों का आयात किया था, जिसकी कीमत 10.5 अरब डॉलर से अधिक थी. इसमें पाम तेल की हिस्सेदारी करीब 56 फीसदी, सोयाबीन तेल की 27 प्रतिशत और सूरजमुखी की हिस्सेदारी करीब 16 फीसदी रही है.