
मोहम्मद यूनुस के बड़बोलेपन के जवाब में भारत का एक फैसला... बांग्लादेश की इस इंडस्ट्री को लगेगा 3 गुना झटका!
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बांग्लादेश की दिक्कत है कि उसे अब निर्यात के लिए चटगांव या मोंगला जैसे बंदरगाहों पर पूरी तरह निर्भर रहना होगा. लेकिन ये पोर्ट पहले से ही भीड़भाड़ और सीमित क्षमता से जूझ रहे हैं. भारतीय बंदरगाहों की तुलना में इनकी अंतरराष्ट्रीय कनेक्टिविटी कम है, जिससे शिपिंग में समय और लागत बढ़ेगी. बांग्लादेश को अपने यहां से निर्यात करने में भारत की तुलना में लगभग 3 गुना खर्च करना पड़ता है.
चीन के साथ मिलकर भारत के खिलाफ चालबाजियां करने वाले और बांग्लादेश को समंदर का एकमात्र गार्जियन बताने वाले मोहम्मद यूनुस को भारत ने तोल-मोल कर मगर ठोस जवाब दिया है. भारत के संसाधनों के सहारे विदेश व्यापार करने वाले बांग्लादेश से भारत ने ट्रांस शिपमेंट की अहम सुविधा छीन ली है. भारत के विदेश मंत्रालय ने बांग्लादेश को मिल रही इस सुविधा को खत्म करने का ऐलान करते हुए कहा कि इस सुविधा की वजह से भारत के हवाईअड्डों और बंदरगाहों पर भीड़ बढ़ती जा रही थी. और इन जगहों पर कंटेनरों की तादाद बढ़ जाने से भारत का निर्यात प्रभावित हो रहा था.
ट्रांस शिपमेंट का अर्थ एक ऐसी सुविधा से है जिसमें एक देश अपने माल को किसी दूसरे देश के बंदरगाहों, हवाई अड्डों या सड़क मार्गों के जरिए तीसरे देशों तक भेज सकता है. सरल शब्दों में कहें तो एक देश से दूसरे देश को निर्यात प्रक्रिया के दौरान बीच में पड़ने वाले तीसरे देश के बंदरगाहों, हवाई, अड्डों या सड़क को इस्तेमाल करने की सुविधा.
जून 2020 से ट्रांस शिपमेंट की सुविधा उठा रहा था बांग्लादेश
भारत ने बांग्लादेश को यह सुविधा जून 2020 से दे रखी थी. बांग्लादेश अपने सामानों को भारतीय जमीन, बंदरगाहों (जैसे कोलकाता, हल्दिया) और हवाई अड्डों (जैसे दिल्ली) के रास्ते अन्य देशों को निर्यात करता और मोटा मुनाफा कमाता था.
यह सुविधा बांग्लादेश को वर्ल्ड मार्केट में आसान एंट्री देता था. बांग्लादेश अपने माल को भारत के लैंड कस्टम स्टेशनों (LCS) से ट्रकों या कंटेनरों में भारतीय बंदरगाहों तक पहुंचाता था, जहां से इसे आगे शिपिंग या हवाई मार्ग से भेजा जाता था. यह प्रक्रिया समय और लागत बचाने में मदद करती थी.
हालांकि भारत की ओर से बांग्लादेश को नेपाल और भूटान में निर्यात के लिए मिलने वाली ट्रांस शिपमेंट की सुविधा जारी रहेगी.

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