
भारत के अलावा और कहां के युवक धोखे से बनाए गए रूसी सेना का हिस्सा? पहले भी लग चुका बाहरी सैनिक लाने का आरोप
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मॉस्को उन सभी भारतीय युवकों को वापस भेजेगा, जो धोखे से रूसी सेना का हिस्सा बना दिए गए. साथ ही मारे गए सैनिकों के परिवार को मुआवजा और रूसी नागरिकता भी देगा. ये फैसला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हालिया रूस यात्रा के बाद लिया गया. रिपोर्ट्स के मुताबिक, रूस पहुंचते ही पासपोर्ट छीन युवकों को लड़ाई पर भेज दिया गया था.
पीएम मोदी हाल में दो दिनों के दौरे पर रूस गए. इस दौरान राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात में कई फैसले लिए गए. इसी में अहम फैसला था, यूक्रेन से युद्ध में फंस गए भारतीयों की सुरक्षित वापसी और मारे गए सैनिकों के परिवारों को मुआवजा देना. बीते दो सालों से ज्यादा समय से चली आ रही जंग में भारतीय युवक धोखे से चले गए थे. ऐसे कई लोग अब भी वहां हैं.
रूस को क्यों पड़ी विदेशी सैनिकों की जरूरत पिछले साल वेस्टर्न मिलिट्री डिस्ट्रिक्ट में तैनात एक मिलिट्री ऑफिसर का ईमेल अकाउंट हैक हो गया. इसमें विदेशी युवकों की रूसी सेना में भर्ती और छोटी-सी ट्रेनिंग के साथ उन्हें यूक्रेन से लड़ने भेजने का जिक्र था. कई और देश जो पहले सोवियत संघ का हिस्सा रह चुके, और यूक्रेन की बजाए खुद को रूस के ज्यादा करीब मानते हैं, वे भी लड़ाई में शामिल होने आने लगे.
इनमें आर्मेनिया, बेलारूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान और लातीविया शामिल हैं. लेकिन ये सभी जानकर लड़ने आए थे, वहीं भारतीय युवकों की बात अलग थी. उन्हें युद्ध में लड़ने नहीं, बल्कि छोटे-मोटे कामों में सेना की मदद के लिए बुलाया गया था.
इसलिए रिक्रूट करता रहा फॉरेन फाइटर्स को
रूस पर पहले भी आरोप लग चुका कि वे जंग के दौरान भाड़े पर लड़ाके बुलवाया रहा. इसके अपने फायदे हैं. जैसे इसमें होस्ट कंट्री के अपने लोग सुरक्षित रहते हैं. खतरनाक हालातों में फॉरेन फाइटर्स को भेजकर अपनों को सेफ रख लिया जाता है. फॉरेन फाइटर्स चूंकि सीधे सेना से नहीं होते इसलिए देश उनकी जिम्मेदारी से जब चाहे पल्ला झाड़ सकते हैं. इसके अलावा, बाहर के सैनिकों के पास खुफिया जानकारी होने का खतरा कम से कम रहता है. यही वजह है कि रूस लगातार फॉरेन फाइटर्स को लेता रहा. उसके पास प्राइवेट आर्मी वैगनर ग्रुप भी है, जिसकी आक्रामकता हमेशा सवालों में रही.

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