
ब्राजील: दक्षिणपंथी बोलसोनारो की हार, वामपंथी लूला डी सिल्वा का उभार, लैटिन अमेरिकी देशों में Left लहर के मायने?
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जिस लैटिन अमेरिकी रीजन को अमेरिका अपना बैकयार्ड कहता है वहां एक के बाद एक 6 देशों में लेफ्ट की सरकारें बन चुकी है. अमेरिका और दुनिया की राजनीति के लिए यह एक बड़ा संदेश है. हाल ही में हुए चुनाव में ब्राजील की जनता ने बोलसोनारो के बड़बोलेपन को खारिज कर दिया है और नेतृत्व की कमान वामपंथी लूला डी सिल्वा को सौंप दी है.
ब्राजील के राष्ट्रपति चुनाव के नतीजों ने राष्ट्रपति जाएर बोलसोनारो की विदाई का रास्ता साफ कर दिया है. इसी के साथ ब्राजील में 4 साल से चले आ रहे दक्षिणपंथी शासन का अंत हो गया है. इस चुनाव में धुर वामपंथी लूला डी सिल्वा 50.9 प्रतिशत वोट लाकर विजयी हुए हैं. आर्मी बैकग्राउंड से आने वाले बोलसोनारो उग्र राष्ट्रवाद के अपने नारे से जनता का दिल नहीं जीत सके. कोरोना के बाद चरम महंगाई और रोजगार की समस्या से जूझ रही जनता ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया है.
ब्राजील राष्ट्रपति चुनाव ने लैटिन अमेरिका में लेफ्ट की वापसी का डंका फिर से बजा दिया है. अब लैटिन अमेरिका की 6 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं वामपंथी सरकारों के नियंत्रण में आ गई है. ये देश हैं ब्राजील, अर्जेंटीना, चिली, पेरू, कोलंबिया और मैक्सिको.
चे ग्वेरा और फिदेल कास्त्रो की जमीन है लैटिन अमेरिका
अमेरिकी बैकयॉर्ड में इस बड़े राजनीतिक बदलाव ने दुनिया के राजनीतिक पंडितों का ध्यान अपनी ओर खींचा है. बता दें कि लैटिन अमेरिका वो भूमि है जहां से लेफ्ट क्रांति की कई चिंगारियां निकली हैं. अमेरिकी दादागिरी को चैलेंज करने वाले और लेफ्ट की राजनीति के पोस्टर ब्वॉय चे ग्वेरा और फिदेल कास्त्रो इसी जमीन से आते हैं. हालांकि लैटिन अमेरिकी देश लेफ्ट की राजनीति के ग्रुमिंग ग्राउंड रहे हैं लेकिन 2010 के दौर में यहां रुढ़िवादी सरकारों का बोलबाला रहा. लेकिन 2018 आते आते इस क्षेत्र की राजनीति फिर बदली और अब यहां एक बार फिर लेफ्ट लहर देखने को मिल रही है.
कौन हैं लूला डी सिल्वा
लैटिन अमेरिकी देशों की राजनीति पर विचार करने से पहले ब्राजील में हुए बदलाव और इस बदलाव के नायक को जानना जरूरी है. क्योंकि ब्राजील 1.6 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी के साथ इस क्षेत्र की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है.

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