
'पंचायत' के नए सीजन में इन 5 चीजों पर पर लगा है दांव, कहानी को किस तरफ लेकर जाएगा चुनाव?
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इस शो की कहानी में सिर्फ गांव की डेली लाइफ ही नहीं, वहां की पॉलिटिक्स भी खूब मजेदार लगती है. मगर इस बार कहानी में वो ट्विस्ट आने वाला है जिसे पॉलिटिक्स का अल्टीमेट टेस्ट कहा जाता है- चुनाव. और चुनाव के आने के साथ ही फुलेरा गांव की कहानी में अब कई बड़ी चीजें दांव पर आ गई हैं.
हिंदी की सबसे पॉपुलर वेब सीरीज में से एक 'पंचायत' का नया सीजन अब बस कुछ ही घंटों में अमेजन प्राइम वीडियो पर रिलीज होने वाला है. गांव के माहौल और जमीन से जुड़े रियल ड्रामा की झलक दिखाने वाला ये शो जनता के लिए एक ऐसा खजाना बन चुका है, जिसका हर नया सीजन मजेदार एंटरटेनमेंट की खेप लेकर आता है. ये इंडियन ओटीटी स्पेस के उन गिने चुने शोज में से भी एक है जो सीजन दर सीजन लगातार दमदार बने हुए हैं.
'पंचायत' के सीजन 4 का ट्रेलर ये दिखा चुका है कि इस बार कहानी में एक गंभीर ट्विस्ट आने वाला है. इस शो की कहानी में सिर्फ गांव की डेली लाइफ ही नहीं, वहां की पॉलिटिक्स भी खूब मजेदार लगती है. मगर इस बार कहानी में वो ट्विस्ट आने वाला है जिसे पॉलिटिक्स का अल्टीमेट टेस्ट कहा जाता है- चुनाव. और चुनाव आने के साथ ही फुलेरा गांव की कहानी में अब कई बड़ी चीजें दांव पर आ गई हैं. आइए बताते हैं 'पंचायत' सीजन 4 में किन चीजों पर है दांव...
1. प्रधान जी का कद 'पंचायत' की कहानी से परिचित दर्शक ये समझते ही होंगे कि फुलेरा में 'प्रधान' एक व्यक्ति का पद नहीं है, ये दम्पत्तियों का साझा पद होता है. पत्नी चुनाव जीतती है, पति शासन करता है. मंजू देवी पहले सीजन से ही लगातार पंचायत की प्रधान बनी हुई हैं. वो प्रधान हैं तभी उनके पति लगातार प्रधान-पति कहलाने के हकदार हैं. दोनों ने गांव के लिए बहुत कुछ किया है लेकिन बनराकस और उसकी पत्नी क्रांति देवी ने एक बार सड़क के गड्ढे में गिरने के बाद से जो बवाल मचाया है, वो तीसरे सीजन तक एक बड़े पॉलिटिकल विवाद में बदल चुका है.
इस पूरे मसले में लगातार जो उठापटक चल रही है उससे पहली बार गांव वालों को प्रधान-दंपत्ति के कामकाज में कमियां भी नजर आने लगी हैं. इसलिए सीजन 4 में पंचायत का चुनाव, मंजू देवी दुबे और ब्रिज भूषण दुबे की साख पर भी एक सवाल लेकर आया है. क्या प्रधान-दंपत्ति अब भी फुलेरा का जनसमर्थन अपने पक्ष में रख पाएगा?
2. सचिव जी का करियर फुलेरा में पंचायत सचिव बनकर आए अभिषेक त्रिपाठी का मन गांव में ऐसा रमा है कि वो अपने घर को भी अब कम ही मिस करते हैं. इस गांव से उन्हें इतना सम्मान और 'प्यार' मिला है कि अब उन्हें दिल्ली की याद भी कम सताती है. लेकिन उन्हें प्रधानजी और प्रह्लाद-चा वगैरह के साथ देखते-देखते कई बार लोग ये भूल जाते हैं कि टेक्निकली वो इनके साथी नहीं, बल्कि सरकारी आदमी हैं. जो भी प्रधान चुना जाएगा, अभिषेक त्रिपाठी उसके सचिव होंगे.
जबतक मंजू देवी प्रधान हैं, तबतक सचिव जी के लिए भी फुलेरा सुख-चैन की जगह है. लेकिन अगर चुनाव जीतकर क्रांति देवी और बनराकस उर्फ भूषण प्रधान-दंपत्ति बन गए तो? क्या तब सचिव जी अपने MBA वाले सपने को किनारे रखकर फुलेरा में टिकने की हिम्मत जुटा पाएंगे? 'पंचायत' के पक्के फैन्स ही समझते हैं कि क्रांति देवी जीतीं तो सचिव जी का गांव में रहना हराम हो जाएगा! 3. क्रांति देवी की क्रांति का भविष्य फुलेरा के ऑरिजिनल प्रधान-दंपत्ति का राज गांव में लंबे समय तक निर्विरोध और एकछत्र चल रहा था. लेकिन एक सड़क की लड़ाई से योद्धा बनकर उठे बनराकस और उसकी पत्नी क्रांति देवी अब प्रधान-दंपत्ति के धुर-विरोधी बन गए हैं. हालांकि, क्रांति और क्रांति-पति का सत्ता विरोध है बहुत दिलचस्प और उनके आवाज उठाने की वजह से कई बार ये दिख चुका है कि मंजू देवी के राज में घपले-घोटाले तो हुए ही हैं. और उनके राज में सारा विकास गांव के एक ही हिस्से में पहुंचता है.

आशका गोराडिया ने 2002 में एक यंग टेलीविजन एक्टर के रूप में एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में कदम रखा था. 16 साल बाद उन्होंने सब कुछ छोड़ दिया. इसका कारण थकान नहीं, बल्कि एक विजन था. कभी भारतीय टेलीविजन के सबसे यादगार किरदार निभाने वाली आशका आज 1,800 करोड़ रुपये की वैल्यूएशन वाली कंपनी की कमान संभाल रही हैं.












