जवान के बहाने बहुत कुछ बोल गए शाहरुख, चुप्पी के पीछे क्या थी किंग खान की राजनीति?
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'जवान' में शाहरुख का मास अवतार, उनका एक्शन और लुक्स थिएटर्स में भौकाल मचा रहे हैं. एक मसाला एक्शन फिल्म में शाहरुख ने जिस तरह सोशल मैसेज डिलीवर किया है, वो दर्शकों को बहुत अपील कर रहा है. इस मैसेज में पॉलिटिक्स का जिक्र है, एकदम खुलकर. हिंदी मेनस्ट्रीम मसाला फिल्म में ऐसा बहुत दिन बाद हुआ है.
'जवान' का तूफान थिएटर्स में पहुंच चुका है. गुरुवार को रिलीज हुई शाहरुख खान की लेटेस्ट फिल्म पहले ही दिन से बॉक्स ऑफिस पर कहर बरपाना शुरू कर चुकी है. 'जवान' के लिए जनता का क्रेज ऐसा रहा कि इसने इसका पहला ही दिन, हिंदी फिल्मों के इतिहास में एक दिन का सबसे बड़ा कलेक्शन लेकर आया. किसी भी फिल्म का बिजनेस ये बता देता है कि जनता में फिल्म का क्रेज कैसा है. क्रेज तो शाहरुख की इसी साल आई फिल्म 'पठान' के लिए भी था, लेकिन इस बार थिएटर्स में माहौल बहुत अलग है. थिएटर्स में नाचती, डायलॉग्स पर हूटिंग करती जनता 'जवान' से एक अलग लेवल पर कनेक्ट कर रही है.
शाहरुख की फिल्में तो बहुत आई हैं, लेकिन उनके करियर में इस तरह का 'मास' वाला मोमेंट 'जवान' से आया है. आखिर इस फिल्म में ऐसा क्या है? इस सवाल का जवाब छिपा है, फिल्म की कहानी में. इस जवाब तक पहुंचने में फिल्म की कहानी को ऊपर की चमचमाती परत के नीचे कुरेदना होगा. तो अगर आपने अभी तक 'जवान' नहीं देखी है और फिल्म की कहानी स्पॉइल होने का डर है तो ये आपका स्पॉइलर अलर्ट है. आगे अपने रिस्क पर पढ़ें...
मैसेंजर नहीं अवेंजर! 'जवान' शाहरुख खान को पहली बार इस कदर हिंसक अवतार में लेकर आई है. सिनेमा में सारा खेल इमेज का होता है और 'जवान' के शाहरुख, अबतक के अपने सबसे गुस्से भरे ऑनस्क्रीन अवतार में नजर आते हैं. लेकिन कहानी इसे यूं दिखाती है कि यहां हीरो का एक्शन प्रतिहिंसा है, यानी हिंसा के जवाब में की हुई हिंसा.
मास सिनेमा में रॉ एक्शन होता है. इसमें हीरो अपना फाइटिंग टैलेंट नहीं दिखा रहा, बस खुद पर बीती गलत चीजों का गुस्सा जता रहा है. यहां प्रैक्टिस किए हुए मूव या किसी क्लासिक हथियार से ज्यादा, जो चीज हाथ में आए उसी से दुश्मन को मार डालने वाला गुस्सा नजर आता है. शाहरुख का किरदार विक्रम राठौर 'जवान' में यही कर रहा है. उनका यंग किरदार, आजाद सोशल चेंज का मैसेज देता है और उसके एक्शन में जानलेवा धार नहीं है. मगर फिल्म में एक पॉइंट के बाद आजाद और विक्रम राठौर एक साथ काम करने लगते हैं.
दोनों किरदारों की इमेज का ये खेल कुछ इस सेन्स में चलता है कि सोशल चेंज के लिए हमेशा आंदोलन ही नहीं, गुस्सा भी जाहिर करना पड़ता है. और जब ये इमेज फिल्म के मैसेज के साथ जुड़ती है, तो कहानी मेटा मोमेंट में बदल जाती है. यानी ये बहुत सारी चीजों के प्रति शाहरुख का रियल लाइफ गुस्सा लगने लगता है. क्योंकि शाहरुख लंबे समय से उनकी रियलिटी ऐसी चीजों में उलझी रही है जिनका स्वभाव बहुत पॉलिटिकल है.
'बेटे को हाथ लगाने से पहले बाप से बात कर' 'जवान' के ट्रेलर में जब शाहरुख ये डायलॉग बोलते सुनाई दिए, तो फैन्स क्रेजी हो गए. इसकी वजह उनकी रियल लाइफ के बहुत करीब जो थी. शाहरुख के बेटे आर्यन खान का विवाद में आना कई महीनों तक लगातार चर्चा में रहा. हर किसी के पास इस मामले पर अपनी एक राय थी. लोग इस मामले पर शाहरुख से कम से कम एक लाइन सुनना चाहते थे. लेकिन शाहरुख ने लगातार चुप्पी बनाए रखी.
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