
जब इलेक्टोरल बॉन्ड नहीं था, तब कैसे आता था चुनावी चंदा, किन समस्याओं को दूर करने के लिए लाई गई यह योजना?
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राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने 2017 के बजट में चुनावी बॉन्ड योजना के बारे में जानकारी दी थी. इसके बाद साल 2018 में इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम संसद से पारित हुई और सरकार ने इसी साल इसको अधिसूचित किया.
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने गुरुवार को चुनावी बॉन्ड योजना (Electoral Bonds Scheme) को असंवैधानिक करार देते हुए इसे रद्द कर दिया. शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड की गोपनीयता अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत सूचना के अधिकार का उल्लंघन है. भारत के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच-जजों की संविधान पीठ ने भारतीय स्टेट बैंक (SBI) को तत्काल प्रभाव से चुनावी बॉन्ड को बंद करने का निर्देश दिया. बता दें कि चुनावी बॉन्ड योजना के शुरू होने के बाद से ही सवालों के घेरे में थी. आइए जानते हैं कि केंद्र सरकार द्वारा लाई गई यह स्कीम क्या थी, इसको लेकर सरकार ने क्या दावे किए थे और इससे पहले राजनीतिक पार्टियों को चुनावी चंदा देने की क्या प्रक्रिया थी?
इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम क्या है?
राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने 2017 के बजट में चुनावी बॉन्ड योजना के बारे में जानकारी दी थी. इसके बाद साल 2018 में इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम संसद से पारित हुई और सरकार ने इसी साल इसको अधिसूचित किया. इस योजना के जरिए कोई व्यक्ति, कॉरपोरेट और संस्थाएं बॉन्ड खरीदकर राजनीतिक दलों को चंदा देती हैं. राजनीतिक दल इस बॉन्ड को बैंक में भुनाकर रकम हासिल करते हैं. भारतीय स्टेट बैंक की 29 शाखाओं को इलेक्टोरल बॉन्ड जारी करने और उसे इनकैश करने के लिए अधिकृत किया गया था. इस लिस्ट में नई दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, गांधीनगर, चंडीगढ़, पटना, रांची, गुवाहाटी, भोपाल, जयपुर और बेंगलुरु स्थित SBI की शाखाएं शामिल थीं. इस योजना की खास बात यह है कि चंदा देने वाला अपनी पहचान गोपनीय रखते हुए स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से एक करोड़ रुपए तक के इलेक्टोरल बॉन्ड्स खरीद सकता है और अपने पसंद की राजनीतिक पार्टी को डोनेट कर सकता है.
इलेक्टोरल बॉन्ड क्यों लाया गया था?
केंद्र की बीजेपी सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड की शुरुआत करते वक्त दावा किया था कि इससे राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता बढ़ेगी और बिल्कुल साफ-सुथरे तरीके से पार्टियों को चंदा मिलेगा. भारतीय वित्त मंत्रालय की शाखा आर्थिक कार्य विभाग के द्वारा 2 जनवरी 2018 को जारी की गई प्रेस रिलीज में कहा गया था कि सरकार ने पॉलिटिकल डोनेशन में ब्लैक मनी को रोकने के लिए चुनावी बॉन्ड योजना को अधिसूचित किया है. तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने जनवरी 2018 में कहा था कि इलेक्टोरल बॉन्ड योजना राजनीतिक चंदे में 'साफ-सुथरा' धन लाने और 'पारदर्शिता' बढ़ाने के लिए लाई गई है.'
अरुण जेटली ने कहा था कि इस योजना से राजनीतिक फंडिंग में दो स्तर पर पारदर्शिता आएगी- पहला, चंदा देने वाले के अकाउंट में रिफ्लेक्ट होगा कि उसने कितने के इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदे हैं और दूसरा, राजनीतिक पार्टी को भी बताना होगा कि उसे कुल कितना चंदा मिला है. उन्होंने कहा था कि चुनावी बॉन्ड योजना का उद्देश्य भी राजनीति में काले धन के उपयोग को रोकना था, जैसा कि यूपीए के दूसरे कार्यकाल के दौरान प्रस्तावित इलेक्टोरल ट्रस्ट के जरिए हासिल करने की कोशिश की गई थी.

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