
इंजीनियरिंग का बंदा, जिसके हुनर ने मणिरत्नम को किया इम्प्रेस, जानें कैसे मिली राइटर दिव्य प्रकाश दूबे को PS-2
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मणिरत्नम की फिल्म पोन्नियन सेल्वन जब हिंदी में रिलीज हुई, तो क्रिटिक्स ने इसके हिंदी में हुए लेखन की तारीफ की थी. दरअसल जिस खूबसूरती से फिल्म के संवाद को ट्रांसेलट किया गया था, उससे तो महसूस नहीं हो रहा था कि कोई डब फिल्म चल रही है. इस फिल्म के हिंदी डायलॉग राइटर और जाने-माने लेखक दिव्य प्रकाश दूबे हमसे कई किस्से शेयर करते हैं.
लेखन की दुनिया में उभरते राइटर दिव्य प्रकाश दूबे ने तमिल फिल्म पोन्नियिन सेल्वन के दोनों भागों का हिंदी अनुवाद किया है. दिव्य प्रकाश पेशे से इंजीनियर रहे हैं लेकिन राइटिंग में बढ़ते इंट्रेस्ट और पैशन को देखते हुए उन्होंने अपना फील्ड स्विच कर लिया और आज राइटिंग को अपना फुल टाइम प्रोफेशन बना लिया है. इस स्विच का कारण, फिल्मों में एंट्री, रोमन-हिंदी स्क्रिप्ट को लेकर होते विवाद, ट्रांसलेशन और राइटर्स को न मिलते क्रेडिट जैसे कई मुद्दों पर दिव्य ने हमसे बातचीत की.
इंजीनियर से राइटर और अब स्क्रिप्ट राइटर के सफर पर दिव्य मुस्कुराते हुए कहते हैं, 'इन दस सालों में सबकुछ सपने जैसा लगता है. मेरी तो इतनी औकात भी नहीं थी कि मैं सपने में सोचूं कि मणिरत्नम जैसी पहुंची हुई हस्ती के साथ काम करने का मौका मिलेगा. देखो, पिछले दस साल में यह संभव हो गया. सबकुछ मैजिकल सा है.'
अपनी फिल्मी एंट्री पर दिव्य कहते हैं, 'अमूमन राइटर्स मुंबई शहर आते हैं और अपना स्ट्रगल प्लान करते हैं. मैंने कभी ऐसा सोचा नहीं था. ख्याल भी नहीं था कि मैं अपनी राइटिंग को फिल्मों में इस्तेमाल करूं, इनफैक्ट फिल्म के लिए स्टोरी लिखने को लेकर मैं काफी रिलक्टेंट था. अभी भी मैं बहुत सीमित काम कर रहा हूं. मैं मानता हूं कि ये जो मीडियम है, वो असल में राइटर्स का है नहीं. ये तो हमेशा से डायरेक्टर की टेरिटरी रही है.
'फिल्मी दुनिया ने सलीम साहब को नहीं छोड़ा, तो हमारी बिसात ही क्या'
हालांकि पिछले कुछ समय में यह शोर हुआ है कि राइटर्स भी फिल्में बना रहे हैं. बाहरी सीरीज देखें, मसलन ब्रेकिंग बैड, द न्यूज रूम, चर्नोबिल(Chernobyl) ये सभी थिएटर्स के राइटर ही हैं. मैं जानता हूं कि हमारे देश में अब भी राइटर्स का यह मीडियम नहीं बन पाया. उस वक्त मैं काफी शॉक्ड हुआ, जब सलीम खान साहब का एक इंटरव्यू देखा, वो बता रहे थें कि जावेद साहब से जोड़ी टूटने के बाद उन्होंने घोस्ट राइटिंग भी की. जब फिल्मी दुनिया ने सलीम साहब को नहीं छोड़ा, तो हमारी बिसात ही क्या है. मैं तो एक इंजीनियरिंग का बंदा हूं,
हर शनिवार-रविवार का वक्त किताबें लिखने के लिए निकाला करता था. अब मेरी लिखीं हिंदी किताबें बिकने लगी. थोड़ा पॉप्युलर हुआ, तब लोगों के फोन आने लगे और पूछने लगे कि अरे हमारे लिए लिख दोगे क्या? दिलचस्प बात यह है कि PS-1,2 भी मुझे मेरी किताब की वजह से ही मिली है. विजय कृष्ण आचार्य जिन्होंने 'गुरू' फिल्म लिखी है, वो मुझे एक लिट्रेचर फेस्ट में मिले, उन्होंने मेरा नंबर लिया और मैं मारे शर्म के उनसे नंबर नहीं पूछ पाया. उनका कॉल आया कि बहुत अच्छे लोग हैं, तुम उनके लिए लिख दो. मैं थोड़ा बिजी हूं, वर्ना मैं प्रोजेक्ट ले लेता. मुझे बताया ही नहीं कि वो मणिरत्नम की बात कर रहे हैं. बस इतना बताया कि तुम्हें चेन्नई से कॉल आएगा. बस रेस्ट ईज हिस्ट्री...'













