
Freedom At Midnight Review: आजादी के इतिहास में सबसे विवादित पन्ने को दिलचस्प पॉलिटिकल थ्रिलर बनाता है शो
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जब भी राजनीतिक मुद्दे गर्माते हैं तो विभाजन की उस दहलीज तक जरूर जाते हैं जहां हिंदुस्तान से पाकिस्तान काटा जा रहा था. मगर उन चंद लोगों के दिमागों में क्या चल रहा था जो करोड़ों लोगों की तकदीर तय करने बैठे थे? सोनी लिव का नया शो 'फ्रीडम एट मिडनाईट' यही कहानी दिखाता है.
मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक और चौराहों से लेकर दुकानों तक, पॉलिटिक्स इंडियन जनता की रूटीन चकल्लस का सबसे पसंदीदा टॉपिक है. और हर पॉलिटिकल चर्चा घूम-फिरकर उस एक महत्वपूर्ण रात तक जरूर पहुंचती है, जहां 200 साल की हुकूमत के बाद अंग्रेज वापस जा रहे थे और एक देश के लोग, दो देशों बांटे जा रहे थे.
14 और 15 अगस्त के बीच की वो रात, जिसे आज हम भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की आइकॉनिक स्पीच 'ट्रिस्ट विद डेस्टिनी' से याद करते हैं. जब भी राजनीतिक मुद्दे गर्माते हैं तो विभाजन की उस दहलीज तक जरूर जाते हैं जहां हिंदुस्तान से पाकिस्तान काटा जा रहा था. आजादी के 77 साल बाद भी ये सवाल लोगों के दिमाग में बना ही रहता है कि क्या हिंदुस्तान को सच में 1947 के उस बंटवारे की जरूरत थी? क्या बंटवारा सही तरीके से हुआ? क्या हिंदुस्तान में से धर्म के आधार पर एक नया देश बनाया जाना जायज था?
'पिंजर', 'मिडनाईट चिल्ड्रेन' और '1947' जैसी क्रिटिक्स की फेवरेट फिल्में हों या 'गदर: एक प्रेम कथा' जीसी पॉपुलर मसाला एंटरटेनर... भारत-पाकिस्तान विभाजन की त्रासदी का आम लोगों के जीवन में उतरना कई फिल्मों ने ऑनस्क्रीन दर्ज किया. फिल्मों में अक्सर ये नोशन भी रहा कि चंद लोगों ने मिलकर करोड़ों लोगों की तकदीरें लिख दीं.
मगर उन चंद लोगों के दिमागों में क्या चल रहा था? करोड़ों लोगों की तकदीर तय करने बैठे उन गिनती के लोगों ने क्या सोचा होगा? उनका क्या पर्सनल और पॉलिटिकल स्ट्रगल रहा? पहली बार दूर से आजादी की गंध मिलने से लेकर, बंटवारे के फैसले तक पहुंचने का वो सफर देश की राजनीति के लिए कैसा था? सोनी लिव का नया शो 'फ्रीडम एट मिडनाईट' यही कहानी दिखाता है.
'मुंबई डायरीज' और 'रॉकेट बॉयज' जैसी शोज के क्रिएटर निखिल अडवाणी ने इस बार खुद ही डायरेक्ट करने का जिम्मा भी संभाला है. 'फ्रीडम एट मिडनाईट' को निखिल ने इसी नाम की एक चर्चित किताब से स्क्रीन के लिए एडाप्ट किया है, जो 1975 में आई थी.
क्या है शो का मुद्ददा? 'फ्रीडम एट मिडनाईट' की कहानी 1946, कलकत्ता (अब कोलकाता) से शुरू होती है. शो का पहला सीक्वेंस भारत के राष्ट्रपिता, महात्मा गांधी से शुरू होता है. बंटवारे को लेकर एक पत्रकार के सवाल पर गांधी जवाब देते हैं- 'हिंदुस्तान का बंटवारा होने से पहले मेरे शरीर का बंटवारा होगा.' इस एक डायलॉग से आपको बंटवारे पर गांधी का पक्ष पता लग जाता है.













