
9 साल बाद माही का कमबैक, 16 साल की बेटी की बनीं 'मां', पहना हिजाब, बोलीं- ये किरदार...
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माही विज सहर होने को है शो में 16 साल की लड़की की मां का किरदार निभा रही हैं. वो बताती हैं कि ये उनके लिए नया या अजीब नहीं है. वो रियल लाइफ में भी मां हैं तो वो इस कैरेक्टर से बहुत रिलेट करती हैं. माही शो से 9 साल बाद टीवी की दुनिया में वापसी कर रही हैं.
नकुशा के किरदार से फेमस माही विज 9 साल बाद सेहर होने को है शो से टीवी इंडस्ट्री में वापसी कर रही हैं. माही एक ऐसे शो में नजर आएंगी जो उनकी रियल पर्सनैलिटी से बेहद अलग है. वो शो में 16 साल की बेटी की मां के किरदार में है, जो पति के दकियानूसी विचारों से तंग है और अपनी बेटी की किस्मत बदलना चाहती है. वो एक हिजाबी महिला का रोल निभा रही हैं. इस बारे में उन्होंने बात की.
कहानी ने खींचा अपनी ओर
माही शो के प्रोमो में हिजाब पहने, आंखों में दर्द और बेटी को कुछ बनाने का जुनून लिए दिख रही हैं. माही हालांकि बताती हैं कि उन्हें इस शो के लिए खास तैयारी नहीं करनी पड़ी. वो पहले ही एक मां हैं और बेटी को कुछ बनाने और प्रोटेक्ट करने की भावना को समझती हैं. TOI से माही ने बताया कि उन्हें इस शो में क्या खींच लाया, कौसर का किरदार निभाना कितना भावुक था और क्यों ये मां-बेटी की कहानी उनके दिल के बेहद करीब है.
माही ने कहा कि- सेहर होने को है एक मां और बेटी की कहानी है, जो पीढ़ियों से चली आ रही जुल्म और पितृसत्ता की जंजीरों को तोड़ना चाहती हैं. कौसर अपनी बेटी को लखनऊ इसलिए लाती है ताकि उसे वो आजादी मिले जिससे उसे कभी लड़ने का मौका भी नहीं मिला. लेकिन सेहर का पिता परवेज इसके खिलाफ खड़ा है और उसे माहिद से शादी कराना चाहता है.
इस शो के लिए कैसे की तैयारी?
माही ने बताया कि वो खुद तीन बच्चों की मां हैं. दो उनके गोद लिए बच्चे और एक उनकी बायोलॉजिकल बेटी तारा, इसलिए उनके लिए इस कैरेक्टर से रिलेट करना मुश्किल नहीं था. वो बोलीं- मेरे लिए मां-बेटी का रिश्ता किसी बड़ी तैयारी की नहीं, बल्कि ईमानदारी की मांग करता था. मैं असल जिंदगी में भी मां हूं, इसलिए कौसर का अपनी बेटी को बचाने का डर और उसकी बेचैनी मैं महसूस कर सकती थी. मैंने एक्टिंग करने की कोशिश नहीं की. मैंने सिर्फ महसूस किया. मैंने ज्यादा ध्यान कौसर के भीतर के हिस्सों को समझने पर दिया. हर दिन लड़ी जाने वाली लड़ाई की थकान, बेटी को और ज्यादा देने में असमर्थ होने का अपराधबोध, और वो छोटे-छोटे पल जिनसे उसे आगे बढ़ने की ताकत मिलती है.

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