स्वीडन में कुरान जलाने की मंजूरी... क्या है यूरेबिया जिससे डर रहा यूरोप?
AajTak
इस्लामोफोबिया के बारे में तो बहुत से लोग जानते हैं, लेकिन एक और भी टर्म है- यूरेबिया. ये यूरोब का अरबीकरण है, जिसे लेकर पश्चिम बहुत डरा हुआ है. यही वजह है कि स्वीडन में कुरान जलाया जा रहा है और फ्रांस में मुस्लिमों पर सख्ती की बात हो रही है. इटली में मस्जिदों के बाहर प्रेयर करने पर पाबंदी लगाने की चर्चा है.
यूरोपीय देश स्वीडन में एक बार फिर कुरान जलाने की तैयारी की जा रही है. विरोध प्रदर्शन के लिए एक शख्स को इसकी इजाजत दी गई. पहले भी ऐसा हो चुका है, जिसकी वजह से NATO में उसे सदस्यता नहीं मिल सकी. इसके बाद भी स्वीडन अड़ा हुआ है. यहां तक कि बहुत से यूरोपियन देश उसके पाले में आ रहे हैं. वहां मुस्लिम चरमपंथ को घटाने के नाम पर कई बदलाव हो रहे हैं.
कहां से आए यूरोप में मुस्लिम?
यूरोप में मुस्लिम आबादी सीरिया, इराक और युद्ध से जूझते देशों से आती गई. शुरुआत में यहां शरणार्थियों को लेकर सरकारें काफी उदार थीं. इसमें उनका खुद का भी हित था. कम आबादी वाले देशों के पास पैसे भरपूर थे और उन्हें काम करने के लिए मैनपावर की जरूरत थी. तो इस तरह से 60 के दशक से यूरोप में मुस्लिम आबादी बढ़ने लगी. यहां तक सबकुछ बढ़िया-बढ़िया दिखता रहा. यूरोप और मुस्लिम दोनों एक-दूसरे की जरूरतें पूरी करते रहे, लेकिन फिर चीजें बदलीं.
जागरण के नाम पर कट्टरपंथ की हुई अपील
अस्सी के दशक के दौरान ईरान के धार्मिक नेताओं ने इस्लामिक जागरण की बात शुरू कर दी. वे अपील करते कि यूरोप जाकर खुद को यूरोपियन रंग-रूप में ढालने की बजाए मुसलमान खुद को मुस्लिम बनाए रखें. यहीं से सब बदलने लगा. मुस्लिम अपनी मजहबी पहचान को लेकर कट्टर होने लगे. पहले जो लोग फ्रांस या जर्मनी में आम लोगों के बीच घुलमिल रहे थे, वे एकदम से अलग होने लगे. इसके साथ ही उनकी बढ़ती आबादी भी यूरोप को अचानक दिखी.
क्या माइग्रेशन पर रोक लगाने से डर दूर होगा? नहीं. प्यू रिसर्च सेंटर का डेटा कहता है कि अगर इसी वक्त यूरोप अपने बॉर्डर सीलबंद कर दे तो भी कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा. मुस्लिम आबादी बढ़ती ही जाएगी. इसकी वजह ये है कि वहां रह रही ज्यादातर मुस्लिम आबादी की औसत उम्र 13 साल है. ये फर्टिलिटी की उम्र में जाने पर ज्यादा संतानों को जन्म दे सकेंगे, जबकि यूरोपियन आबादी बड़ी उम्र की है और जन्मदर भी लगातार गिर रही है.