...वो दौर, जब चॉकलेट के बदले खरीद सकते थे बाजार की सबसे कीमती चीज
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Chocolate Day: सेंट्रल अमेरिका में एक ऐसा भी समय था, जब लोग कोकोआ बीन्स देकर दुकानों से सामान खरीदा करते. अगर किसी को एक टर्की चाहिए, जो कि 20 से 25 किलो का होता है, तो बदले में सिर्फ 2 सौ कोकोआ बीन्स देनी होती थी और भारी-भरकम पक्षी मिल जाता था. तब कोकोआ बीन्स से चॉकलेट नहीं बनती थी, बल्कि उसे शर्बत या सूप की तरह पिया जाता था.
चॉकलेट में ट्रिप्टोफेन होता है. ये एक तरह का अमीनो एसिड है, जो ब्रेन तक पहुंचकर सेरोटोनिन पैदा करता है. यानी फील-गुड केमिकल. यही वजह है कि कैसा भी मूड हो, चॉकलेट खाने के बाद थोड़ा तो सुधरता ही है. यहां तक कि इसे दर्दनिवारक की तरह भी देखा जाता है. आज दुनियाभर में लोग चॉकलेट डे मना रहे हैं, लेकिन हजारों साल पहले अपने कच्चे फॉर्म में भी चॉकलेट खूब पसंद की जाती थी. आज की चॉकलेट का छोटा बार भी उस समय गोल्ड जितना कीमती हुआ करता था.
वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के मानव विज्ञानी और माया सभ्यता के जानकार डेविड डेनियल ने दावा किया था कि उस समय में कोकोआ बीन्स किसी करेंसी से कम नहीं थीं. शुरुआत में ये बार्टर सिस्टम के तहत काम करतीं. जैसे कोई सामान लेने के लिए बदले में कोकोआ बीन्स दे देना. बाद में 16वीं सदी के दौरान यूरोपियन मालिक खुश होने पर अपने गुलामों को ये बीन्स देने लगे ताकि बदले में वे अपनी मनपसंद चीज खरीद सकें.
क्या है माया सभ्यता? माया सभ्यता वर्तमान मैक्सिको और सेंट्रल अमेरिका की एक महत्वपूर्ण सभ्यता थी, जिसकी शुरुआत 1500 ईस्वी पूर्व से मानी जाती है. इसमें बीच के समय को क्लासिक पीरियड कहा जाता है, जिसमें सभ्यता का विकास चरम पर था. इस दौरान ज्योतिष, खगोल, गणित और व्यापार में भी बढ़त होने लगी. मैक्सिको इसका केंद्र था और ग्वाटेमाला, होंडुरास और यूकाटन में भी ये सभ्यता फैली हुई थी.
मिले कोकोआ के उपयोग के प्रमाण सिन्धु घाटी और मिस्र की सभ्यताओं की तरह ही इस सभ्यता की भी बहुत सी अनसुलझी बातें हैं, जिनपर एंथ्रोपोलॉजिस्ट काम कर रहे हैं. इसी क्रम में ये पता लगा कि उस दौरान भी चॉकलेट के कच्चे माल यानी कोकोआ बीन्स का भरपूर उपयोग होता था. मैक्सिको में मिले म्यूरल्स, सिरेमिक पेंटिंग और नक्काशियों में इस बात के प्रमाण दिखे.
खुशी और यौन ताकत से था संबंध माया के समय में लोग चॉकलेट को बार या कैंडी की तरह नहीं खाते थे, बल्कि पीते थे. आमतौर पर ये सूप या शोरबे के रूप में होता. इसे चीनी मिट्टी के बर्तन में डालकर गर्म या गुनगुना पिया जाता. इस सूप को यौन ताकत बढ़ाने वाला माना जाता था. ये बिल्कुल वैसा ही है, जैसे आज चॉकलेट को हैप्पीनेस से जोड़ा जाता है. कोकोआ बीन्स से बना पेय तब एफ्रोडिजिएक फूड की श्रेणी में आता. मतलब खाने की वो चीज, जिससे यौन इच्छा या ताकत बढ़ती है. हालांकि इस समय तक भी कोकोआ करेंसी की तरह काम नहीं आती थी.
नवजात बच्चों के सिर पर फूलों के साथ मिलाकर कोकोआ बीन्स का लेप लगाया जाता ताकि उसकी खुशबू से बच्चे की सारी इंद्रियां खुल जाएं. ये खुशबू से बच्चे का पहला परिचय होता. बड़े पारिवारिक मौकों पर भी इसे पवित्र और कीमती चीज की तरह केंद्र में रखा जाता. आम ढंग से समझें तो माया सिविलाइजेशन के दौरान कोकोआ का वही महत्व था, जो हमारे लिए हल्दी का है.