
500 करोड़ कमाने वाली 'छावा' के डायरेक्टर बेचते थे वड़ा पाव, स्टूडियो में झाड़ू लगाते हुए सीखी फिल्ममेकिंग
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'छावा' की धुआंधार कामयाबी को विक्की कौशल के बढ़ते स्टारडम से जोड़ा जा रहा है. लेकिन पर्दे के पीछे, फिल्म के असली हीरो यानी 'छावा' के डायरेक्टर लक्ष्मण उतेकर पर बात किए बिना इस फिल्म की कामयाबी का सेलिब्रेशन अधूरा ही रहेगा. लक्ष्मण का सफर अपने आप में सपने पूरे होने की किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है.
विक्की कौशल स्टारर फिल्म 'छावा' इन दिनों थिएटर्स में जमकर भीड़ जुटा रही है. बॉलीवुड की सबसे बड़ी फिल्मों में से एक बन चुकी 'छावा' लगातार बॉक्स ऑफिस पर कमाई के नए रिकॉर्ड बना रही है. 13 दिन पहले रिलीज हुई ये फिल्म अब वर्ल्डवाइड बॉक्स ऑफिस पर 500 करोड़ ग्रॉस कलेक्शन का आंकड़ा पार कर चुकी है.
फिल्म में छत्रपति संभाजी का किरदार निभा रहे विक्की कौशल की जमकर तारीफ हो रही है और 'छावा' की धुआंधार कामयाबी को उनके स्टारडम के बढ़ते कद से जोड़ा जा रहा है. लेकिन पर्दे के पीछे, फिल्म के असली हीरो यानी 'छावा' के डायरेक्टर लक्ष्मण उतेकर पर बात किए बिना इस फिल्म की कामयाबी का सेलिब्रेशन अधूरा ही रहेगा. लक्ष्मण का सफर अपने आप में सपने पूरे होने की किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है.
स्क्रीन पर शानदार हीरो उतारने वाला, रियल लाइफ हीरो श्रीदेवी की फिल्म 'इंग्लिश विंग्लिश' या आलिया भट्ट की 'डियर जिंदगी' देखते हुए आप इन फिल्मों के फ्रेम्स से इम्प्रेस हुए बिना नहीं रह सकते. इन फिल्मों के कई महत्वपूर्ण सीन्स को जानदार बनाने में इन फ्रेम्स की सेटिंग, लाइटिंग और कैमरा का बहुत बड़ा रोल था. कई फ्रेम इतने प्यारे थे कि उन्हें देखते आपका दिल नहीं भरेगा. ये फ्रेम लक्ष्मण उतेकर की देन थे. डायरेक्टर बनने से पहले वो फिल्म इंडस्ट्री के नामी सिनेमेटोग्राफर थे.
लक्ष्मण की फिल्मों के फ्रेम देखकर ये लग सकता है कि उन्होंने किसी बड़े सिनेमा इंस्टिट्यूट से सिनेमा पढ़ाई की होगी. लेकिन लक्ष्मण ने असल में सिनेमा की नहीं, जिंदगी की वो पढ़ाई की है जिसने दुनिया को एक नई नजर से देखने का ज्ञान दे दिया.
लक्ष्मण ने वो चार साल के थे जब उन्हें अपना गांव छोड़कर अपने एक अंकल के साथ रहने के लिए मुंबई आना पड़ा. वो छुट्टियों में गांव वापस जाया करते थे. पढ़ाई में लक्ष्मण का मन नहीं लगता था तो कई छोटे-मोटे काम करने लगे. उन्होंने सबसे पहला काम मुंबई के शिवाजी पार्क में वड़ा पाव बेचने का किया. फिर एक दिन BMC (बॉम्बे म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन) वाले उनका ठेला उठा ले गए. कुछ साल पहले रेडिफ को दिए एक इंटरव्यू में लक्ष्मण ने बताया था कि वो खुद वड़ा पाव बेचने से बोर हो चुके थे इसलिए उन्हें लगा 'अच्छा हुआ.' उन्होंने कहा, 'तब मैं पूरे दिल से वड़ा पाव बनाता था, और वो लोगों को पसंद आता था. अब मैं पूरे दिल से फिल्में बनाता हूं और वो लोगों को पसंद आती हैं.'
किस्मत से मिले मौकों को कसकर पकड़ने की कहानी है लक्ष्मण का सफर फिर एक दिन लक्ष्मण ने अखबार में एक ऐड देखा, जिसने उनकी तकदीर बदल दी. ऐड ये था कि मुंबई के एक स्टूडियो को स्वीपर यानी सफाई करने वाले की जरूरत थी. लक्ष्मण पहुंच गए और नौकरी शुरू कर दी. उन्हें स्टूडियो की लाइफ और खाना पसंद आने लगा था. एक बार स्टूडियो में कोई कैमरा अटेंडेंट नहीं था और चीफ कैमरामैन खफा हो रहे थे तो स्टूडियो मालिक ने लक्ष्मण की तरफ इशारा करते हुए कहा, 'अरे ये बैठा है, इसे ले जा.' इस तरह वो कैमरा अटेंडेंट बन गए. फिर चीफ कैमरा अटेंडेंट, असिस्टेंट कैमरामैन बनते हुए वो फाइनली कैमरामैन बन गए.













