
शाम को ‘लंच’, तड़के ‘डिनर’ करते थे बप्पी दा, रुला देती है संघर्ष की कहानी!
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"बप्पी दा को इंडस्ट्री में 50 साल हो गए थे. उन्होंने जबरदस्त टाइम देखा है. म्यूजिक इंडस्ट्री को एक नया आयाम बप्पी दा ने ही दिया था. डिस्को कल्चर उन्हीं की देन है. वेस्टर्न और इंडियन म्यूजिक की जुगलबंदी को बाप्पी दा ने बढ़ावा दिया था."
"बप्पी दा संग मेरी जो बॉन्डिंग रही है, उसे किसी रिश्ते में बांध नहीं सकते हैं. गुरू, बड़ा भाई, कंपोजर जो भी कह लें, हमने इसे परिभाषित करने की कोशिश भी नहीं की थी. अपने स्ट्रगल के दिनों से उनसे मिलता रहा हूं. अभी तो वह जुहू में रहते हैं, लेकिन पहले संजय खान के बंग्ले के पास उनका फ्लैट हुआ करता था. वहां अक्सर मैं जाया करता था. वह अपने मां-पिताजी के साथ रहते थे. उस वक्त वह एक दिन में पांच-छह स्टूडियो में गाना गाया करते थे. उनके पास वक्त नहीं होता था. बहुत बिजी होने के बावजूद वह हम जैसे लोगों से मिल लेते थे. चाय पिला देते थे, किस्से सुना दिया करते थे. उनके साथ घर जैसा रिलेशन तब से लेकर आजतक बरकरार रहा है. हालांकि, मैंने उनके साथ बहुत ज्यादा काम नहीं किया. मुश्किल से 15 फिल्मों में उन्होंने मुझसे गाना गवाया होगा. प्रकाश मेहरा की दलाल फिल्म, अफसाना प्यार का में आशा जी के साथ गाने का उन्होंने मुझे मौका दिया था."













