
Vedaa Review: जाति के नाम पर दबाए गए लोगों की कहानी, जॉन अब्राहम-शरवरी की 'वेदा' करती है इम्प्रेस
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अपने मानवीय अधिकारों का हनन, खुलकर सांस न ले पाने का डर और मौके न मिलने की खीझ को मन में दबाए आज भी कई लोग हमारी इस दुनिया में जी रहे हैं. उन्हीं की कहानी को फिल्म 'वेदा' में लेकर आए हैं जॉन अब्राहम और शरवरी. कैसी है ये फिल्म जानिए हमारे रिव्यू में.
आज हमारे देश को आजाद हुए 78 साल हो गए हैं. लेकिन जाति ऐसी चीज है, जिसकी कालिख आज भी जनता के एक बड़े हिस्से का जीवन काला कर रही है. हम बड़े और तुम छोटे का हिसाब आज भी अलग-अलग जगहों पर चल रहा है. यहां 'ऊंची' जाति के लोग दलितों पर राज कर रहे हैं. अअपने मानवीय अधिकारों का हनन, खुलकर सांस न ले पाने का डर और मौके न मिलने की खीझ को मन में दबाए आज भी कई लोग हमारी इस दुनिया में जी रहे हैं. उन्हीं की कहानी फिल्म 'वेदा' में लेकर आए हैं जॉन अब्राहम और शरवरी.
क्या है फिल्म की कहानी?
फिल्म की शुरुआत होती है POK से जहां मेजर अभिमन्यु कंवर (जॉन अब्राहम) एक मिशन पर हैं. अपने कैप्टन के ऑर्डर न मानने की वजह से उनकी नौकरी चली जाती है. तब आपको दिखाया जाता है कि आखिर अभिमन्यु ने जो किया, वो क्यों किया. आतंकवादियों के हाथों अपनी बीवी को खो चुके अभिमन्यु, उसी बीवी से किया वादा निभाने बाड़मेर पहुंच जाते हैं. बाड़मेर में अपनी अलग ही व्यवस्था चल रही है. यहां अपने परिवार संग रहती है वेदा बेरवा (शरवरी).
दलित होने की वजह से वेदा को वाटर कूलर से पानी पीने की इजाजत नहीं है. वो मटके का पानी पीने को मजबूर है. अगर वो पानी खत्म हो जाए तो पानी भूल जाओ. वेदा अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में अपने समाज के लोगों को अपनी जान गंवाते देखती है. उसकी आंखों के सामने लोगों को मारकर. उनके घर की लड़कियों को उठा लिया जाता है और उसे अपनी नजरें ऊंची करने की भी इजाजत नहीं है. वेदा बॉक्सिंग सीखना चाहती है, लेकिन गांव के प्रधान का भाई (क्षितिज चौहान) उसकी इस इच्छा को भी बहुत दर्दनाक तरीके से कुचल देता है. प्रधान जितेंद्र प्रताप सिंह (अभिषेक बनर्जी) पर 150 जिलों का भार है, लेकिन न्याय वो अपने मन से ही अपनी जाति के लोगों को ध्यान में रखकर ही करता है.
वेदा के भाई विनोद (अनुराग ठाकुर) की एक 'गलती' उसके पूरे परिवार का जीना दुश्वार करने वाली है. इससे बचने के लिए वेदा, उसकी बहन गहना (तन्वी मल्हार), उसके पिता (राजेंद्र चावला) को अपनी जान दांव पर लगानी पड़ेगी. वेदा खुलकर सांस लेना चाहती है और मेजर अभिमन्यु बाड़मेर में रहते हुए अपने आसपास हो रही चीजों को पसंद नहीं करते. ऐसे में दोनों एक दूसरे की जिंदगी का अहम हिस्सा बन जाते हैं. दोनों एक दूसरे को कुछ नई और जरूरी चीजें सिखाएंगे. क्या वेदा समाज की बेड़ियों को तोड़ पाएगी? वेदा की कहानी में मेजर अभिमन्यु कंवर का क्या रोल होगा? यही फिल्म में देखने वाली बात है.
कैसी है फिल्म?













