
Tehran Review: एक्शन-सस्पेंस से भरी है जॉन अब्राहम की 'तेहरान', स्क्रीन से नजर हटाना होगा मुश्किल
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स्वतंत्रता दिवस का मौका है और बॉलीवुड ने एक नहीं बल्कि दो देशभक्ति से भरी फिल्में जनता को परोसी है. जॉन अब्राहम घर बैठे फैंस के लिए अपनी फिल्म 'तेहरान' ले आए हैं. लंबे वक्त से इस फिल्म का इंतजार किया जा रहा था. अब आखिरकार ये जी5 पर स्ट्रीम हो गई है. 'तेहरान' देखने से पहले पढ़ें हमारा रिव्यू.
स्वतंत्रता दिवस का मौका है और बॉलीवुड ने एक नहीं बल्कि दो देशभक्ति से भरी फिल्में जनता को परोसी है. सिनेमाघरों में जहां एक तरफ 'वॉर 2' को देखने दर्शक पहुंच रहे हैं, वहीं जॉन अब्राहम घर बैठे फैंस के लिए अपनी फिल्म 'तेहरान' ले आए हैं. लंबे वक्त से इस फिल्म का इंतजार किया जा रहा था. अब आखिरकार ये जी5 पर स्ट्रीम हो गई है.
क्या है फिल्म की कहानी?
फिल्म 'तेहरान' की कहानी साल 2012 में भारत में इजरायली डिप्लोमेट पर हुए हमले से प्रेरित है. फिल्म की शुरुआत एसीपी राजीव कुमार (जॉन अब्राहम) के एक गैंगस्टर का खात्मा करने से होती है. इस गैंगस्टर ने राजीव के परिवार को धमकाया था. राजीव को अपने सनकी होने के लिए जाना जाता है. वो अगर कोई केस ले ले, तो फिर उसे निपटाकर ही दम लेता है. इसके बाद हम दिल्ली में एक इजरायली डिप्लोमेट की कार में किसी को बम लगाते देखते हैं. ये बम फटने पर गाड़ी में बैठे लोगों के साथ-साथ एक 6 साल की बच्ची भी घायल हो जाती है और बाद में दम तोड़ देती है.
जांच में पता चलता है कि ये अटैक ईरान ने इजरायली डिप्लोमेट पर करवाया है. ऐसे में राजीव के बॉस और राजनीति से जुड़े लोगों का मानना है कि ये केस राजीव कुमार को दिया जाना चाहिए. उसके सनकी होने का जिक्र होता है और राजीव को मामला सुलझाने के लिए भेज दिया जाता है. हालांकि चीजें जितनी दिख रही हैं उतनी सीधी नहीं हैं और दांव पर राजीव की जान के साथ-साथ भारत के हाथ आने वाली एक बड़ी डील भी है. इन सभी मुश्किलों के बीच राजीव अपना मिशन कैसे पूरा करेगा, कर पाएगा भी या नहीं, यही 'तेहरान' में देखने वाली बात है.
कैसी है फिल्म?
डायरेक्टर अरुण गोपालन ने इस फिल्म की कहानी को दिखाने पर काफी ध्यान दिया है. इसमें फिल्म के सितारों ने भी उनका खूब साथ दिया. फिल्म में किसी को भी सही और गलत दिखाने की कोशिश नहीं की गई है. हालांकि जॉन अब्राहम की कही बातें आपके मन में जरूर बैठ जाती हैं. यही आपको बताती हैं कि मेकर्स का मैसेज क्या है. इस फिल्म में कहानी को दिखाने पर पूरी तरह से फोकस किया गया है. यूं तो फिल्म बनाने के हिसाब से इसमें कुछ बड़े बदलाव किए गए होंगे, लेकिन फिर भी ये काफी ऑथेंटिक लगती है.

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