'तुम्हारी टाइप की फिल्में नहीं करता', पहले अनुराग कश्यप ने अलाया F को किया था रिजेक्ट, फिर कैसे बदला फैसला?
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अलाया एफ ने अपनी दमदार परफॉर्मेंस से फैंस समेत क्रिटिक्स को काफी सरप्राइज किया है. एक न्यूकमर के तौर पर अलाया की भूख कहानी ओरिएंटेड फिल्मों को तवज्जों देना है. अलाया हमसे अपनी जर्नी और नेपोटिज्म जैसे टॉपिक्स पर भी दिल खोलकर बातचीत करती हैं.
'जवानी जमानेमन', 'फ्रेडी' जैसी फिल्मों में अपनी एक्टिंग का जलवा बिखेर चुकी अलाया एफ इन दिनों अपनी अपकमिंग फिल्म 'ऑलमोस्ट प्यार विथ डीजे मोहब्बत' को लेकर उत्साहित हैं. अलाया हमसे बता रही हैं कि किस कदर वो इस फिल्म से जुड़ीं और साथ ही अपनी जर्नी व प्लानिंग्स पर भी हमसे डिटेल में बातचीत करती हैं.
अलाया के लिए फिल्म सिलेक्शन का प्रॉसेस क्या होता है? -मैं बहुत नई हूं. अभी मुझे स्क्रिप्ट मिल रहे हैं, जिसे मैं अपनी मर्जी के हिसाब से सिलेक्ट कर पा रही हूं. इससे पहले तो बस अपनी गट फीलिंग के साथ फिल्में की हैं. जवानी जानेमन के लिए भी मुझे काफी टेस्ट देने पड़े थे. इस फिल्म की भी बात करूं, तो मैं अनुराग सर के पास गई, तो उन्होंने मुझे देखते ही कहा कि मैं तुम्हारे टाइप की फिल्में नहीं, बल्कि मैं तो टेढ़ी फिल्में बनाता हूं. मेरे पास तुम्हारे लिए कुछ नहीं है. मैंने उनसे दरख्वास्त की, सर आप बस मेरा शो रील देख लें, भले फिल्म नहीं दें. रील देखने के फौरन सात मिनट बाद उन्होंने मुझे यह फिल्म ऑफर कर दी थी. मैं सच कहूं, तो करियर में मुझे लॉन्च कभी नहीं मिला, जवानी जानेमन मेरे लिए ब्रेक था. लॉन्च और ब्रेक में बहुत फर्क है. टेक्निकली यही मेरी पहली फिल्म थी, लेकिन इसके मेकिंग में चार साल लग गए थे. मेरी दोनों फिल्मों को अच्छे रिव्यूज मिले हैं, तो इसका फायदा यही हुआ है कि मुझे परफॉर्मेंस बेस्ड फिल्में ही ऑफर होती हैं.
आपने कहा ब्रेक मिला है, लॉन्च नहीं हुई. इसमें क्या फर्क है? -लॉन्च वही है, जब आपको मद्देनजर रखकर फिल्म बनाई जाती है. एक प्रोजेक्ट आपके हिसाब से बनती है. वहीं ब्रेक है कि आप किसी प्रोजेक्ट का हिस्सा ऑडिशन के जरिए बनते हो. जब शुरूआत में आई थी, तो बहुत बुरा लगता था कि मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है. मुझे लॉन्च क्यों नहीं कर रहे, लोग मेरे साथ फिल्म क्यों नहीं बना रहे. फिर मुझे अहसास हुआ कि जो भी होता है, अच्छे के लिए होता है. अगर फिल्में मुझे आसानी से मिल जाती, तो शायद मैं मेहनत नहीं करती. मेरी आज ब्रांड इमेज यही है कि लोग मुझे फलां की बेटी ने नाम से नहीं, बल्कि काम से पहचानते हैं. मैं इससे बहुत संतुष्ट हूं.
मां(पूजा बेदी) और नाना (कबीर बेदी) के परिवार से होते हुए भी कभी नेपोटिज्म का टैग नहीं लगा है? - मेरा स्ट्रगल अलग किस्म का है. मैं कभी नहीं सक सकती कि मेरी जर्नी एक आउटसाइडर की तरह मुश्किल रही है. बिलकुल भी नहीं. मैं यह बोलने का सोच भी नहीं सकती हूं. मेरे सारे फ्रेंड्स आउटसाइडर ही हैं. मेरा कोई एक्टर दोस्त नहीं है. इसका फायदा यही है कि मैं ग्राउंडेड रह पाई हूं. मेरे दोस्तों को तो फर्क ही नहीं पड़ता है कि मैं सिलेब्रिटी हूं. मम्मी और नाना की वजह से शायद लोगों को लगे कि मेरी लाइफ बहुत स्पेशल है. मैं इंडस्ट्री की पार्टीज में जाती होंगी. ऐसा कभी नहीं हुआ है. मेरी मां हमें एक दो बार ही पार्टीज में लेकर गई हैं. मैं इस दुनिया का हिस्सा नहीं हूं. जब डिसाइड किया कि एक्टिंग करनी है, तो मुझे सबकुछ शुरू से सीखना पड़ा है. हां, बेशक ये फायदा है कि मुझे मेरे मां और नाना की वजह से बड़े डायरेक्टर्स व प्रोड्यूसर्स से मीटिंग मिल जाए, जहां बहुत से आउटसाइडर को यह मौका भी नहीं मिल पाता है.
आप अपनी कंटेम्प्ररी एक्ट्रेसेज के काम को फॉलो करती हैं? किसके काम ने आपको सरप्राइज किया है? -हां, मैं कंपीटिशन में यकीन रखती हूं. हालांकि, मैं जलनेवाली एक्ट्रेस नहीं हूं. मुझे हेल्दी कंपीटिशन पर यकीन है. मैं मानती हूं कि यहां हर किसी के लिए जगह है. हम एक साथ ग्रो कर सकते हैं. मैं अपने समकालीन के काम को फॉलो करती रहती हूं. मुझे किसी की परफॉर्मेंस या इंटरव्यू अच्छा लगता है, तो मैं उसे देखकर सीखती हूं. लर्निंग के मामले में मैं बहुत कंपीटेटिव हूं. रही बात किसी के काम की, तो मैं दावे के साथ कह सकती हूं, तृप्ती ढिमरी एक डार्क हॉर्स साबित होंगी. वो बहुत अच्छी एक्ट्रेस हैं. लोग उन्हें इतना ज्यादा नोटिस नहीं कर रहे हैं, लेकिन जब वो बर्स्ट करेंगी, सबकी लग जाएगी.
किसी फिल्म के रिजेक्शन और सिलेक्शन पर किस तरह का अप्रोच होता है? -जब आप न्यूकमर होते हैं, तो उस वक्त सबसे बड़ी मुसीबत किसी फिल्म को इंकार करने में होती है. सामने वाला को लगता है कि ये नई लड़की हमें कैसे रिजेक्ट कर सकती है. उन्हें लगता है कि उन्हें हमारे अच्छे-बुरे का हमसे ज्यादा पता है. मैं इस मामले में अपने टीम को ही विलेन बना लेती हूं. मैं कोशिश करती हूं कि मैं डायरेक्ट न कर पाऊं. रही बात रिजेक्शन की, तो इससे बहुत दुख होता है. उससे निकलना मुश्किल हो जाता है.