तब्बू को कौन कहता है भारतीय सिनेमा की 'मेरिल स्ट्रीप'
BBC
तब्बू अपनी उम्र के छठे दशक में प्रवेश कर चुकी हैं और इन पांच दशकों की ज़िंदगी में उन्होंने सिनेमाई पर्दे पर अलग-अलग किरदारों को जिया है. आइये रूबरू होते हैं तबस्सुम हाशमी से.
शेक्सपियर ने अपने मशहूर नाटक 'एंटनी एंड क्लियोपेट्रा' में नायिका क्लियोपेट्रा के लिए लिखा है - "न उम्र उसे मुरझा सकती है और न ही रवायतों की बंदिशें उसके गुणों की चमक फीकी कर सकती हैं."
शेक्सपियर की इन पंक्तियों की जीती-जागती नज़ीर हम अगर हिंदी सिनेमा की दुनिया में तलाशने जाएं तो अनायास हमारी आँखें तब्बू पर जा ठहरेंगी.
चार दशकों से जारी अपने सिनेमाई सफ़र में ग्लैमर और गम्भीरता, लोकप्रियता और शास्त्रीयता, हास्य और करुण के नितांत विपरीत छोरों को छूने वाली अपनी अदाकारी के ज़रिए उन्होंने वक़्त और कायदे की हर स्थापित मान्यता को तोड़कर खालिस अपनी इबारत लिखी हैं.
तबस्सुम हाशमी यानी तब्बू की पैदाइश और परवरिश हैदराबाद के एक शिक्षित परिवार में हुई. हालाँकि उनकी रिश्तेदार शबाना आज़मी हिंदी सिनेमा में स्थापित हो चुकी थीं और बड़ी बहन फ़राह हाशमी की दिलचस्पी भी फ़िल्मों की तरफ शुरू से थी.