
आखिरी एपिसोड की स्क्रिप्ट पढ़कर डर गए थे प्रह्लाद पांडे, कहा था-मैं तो अच्छा एक्टर भी नहीं हूं!
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पंचायत 2 के आखिरी ऐपिसोड ने सबको हैरान कर दिया था. किसी ने सीरीज के ऐसी ट्रैजिक एंडिंग की कल्पना नहीं की थी. सीरीज की जान रहे उप-प्रधान अका फैसल मल्लिक हमसे शेयर कर रहे हैं शूटिंग के जुड़े कई दिलचस्प किस्से..
पंचायत सीरीज में उप प्रधान प्रह्लाद पांडे का किरदार निभाकर अभिनेता फैजल मलिक घर-घर में जाना-पहचाना नाम बन गए हैं. शो के रिस्पांस से वो गदगद हैं. बधाई देने वाले लगातार फोन घनघना रहे हैं. मैसेज भेजकर कोई खुद के भावुक होने की बात बता रहा है तो कोई अपना भी दर्द साझा कर रहा है. फैजल कहते हैं कि यह स्पेशल फीलिंग है, मैं खुद को खुशनसीब मानता हूं कि इस लेवल पर इनसे कनेक्ट हो पा रहा हूं.
मैं अच्छा एक्टर भी नहीं हूं पंचायत सीरीज-2 का आखिरी ऐपिसोड काफी अलग था. किसी ने ये उम्मीद नहीं की थी कि कहानी को इतने इमोशनल ऐंड पर मोड़ दिया जाएगा. फैजल खुद इससे हैरान थे. उन्होंने कहा, ‘जब स्क्रिप्ट मैंने पढ़ी तो फौरन दोनों राइटर्स से बात की. उनसे पूछा कि कुछ ज्यादा ही भरोसा नहीं कर रहे हो मुझपर? ये तो बहुत ही अलग जोन में जा रहा है. यह तो शो के बिलीफ को बदलने की लड़ाई है. अगर सही से दर्शकों के बीच नहीं पहुंचा, तो लोग फौरन सवाल उठा देंगे. ऐसी अलग सी चीज छू रहे हैं, जिन्हें लेकर हमारा देश खासा सेंसेटिव व इमोशनल है. और ये सबकुछ बदलाव मेरे जरिए. मैं तो अच्छा एक्टर भी नहीं हूं. फिर भी उन्होंने कहा कि ये तो होगा और आप कर जाएंगे’.
चार-पांच घंटे प्रोस्थेटिक मेकअप से गुजरता था फैजल ने इस दौरान का अपना शूटिंग एक्सपीरियंस भी बताया. उन्होंने कहा कि हमने पूरा क्लाइमैक्स पांच-सात दिन में शूट किया था. बहुत बारीकी से इस पूरे किस्से को शूट किया गया. आप हर वक्त रो नहीं सकते हैं या तो आप रो कर आ रहे हों या फिर एक दम से सुन्न पड़े हों. इसकी तैयारी में इन राइटर्स ने बहुत साथ दिया. मैं तो डरा हुआ था कि अगर ये नहीं कर पाऊंगा, तो जितनी इमेज बनी है और फिर जितना प्यार मिला है, वो मिट्टी न हो जाए. मैंने इस सीन के लिए अपने अंदर के कई तार झकझोरे. कई एक्टर्स से बातचीत भी की. प्रोस्थेटिक मेकअप के जरिए बालों को छिपाया इसके लिए चार-पांच घंटे देना पड़ता था. मूंछ और दाढ़ी हटवा दी थी.
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ये थोपा हुआ इमोशन नहीं, सच्चाई है
शहीद बेटे के अंतिम संस्कार के सीन को लेकर एक वर्ग का यह भी कहना है कि इसे जबरदस्ती इमोशनल बना दिया गया? फैजल मलिक भी कशमकश में थे. वो कहते हैं कि मैंने भी बार-बार कहा कि सोच लो यार. लेकिन वो लोग जानते थे कि वो क्यों कर रहे हैं. ये थोपा हुआ इमोशन नहीं है. ये सच्चाई है जीवन की. गांव का ही जवान आर्मी में जाता है. उनकी दाद देनी होगी कि वे इस तरह के रिस्क लेने को तैयार थे. मैंने तो पहले ही कह दिया था कि अगर अच्छा नहीं होता है, तो मुझे मारना-वारना मत.

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