Krishan leela : जब बिना अपराध श्राप देकर दुर्वासा ने आफत में डाली अपनी जान
ABP News
ऋषि दुर्वासा हर युगों में अपने अलग-अलग अवतारों के साथ जुड़े रहे, लेकिन उनके क्रोध में आकर श्राप देने की वजह से लोग भयभीत भी रहते थे.
Krishan leela : प्राचीनकाल में अंबरीष नामक राजा थे, जिनकी प्रजा बहुत सुख-शांति से रहती थी. वह मोह-माया से दूर होकर अधिकतर समय ईश्वर की आराधना में लगाते थे. राजा अम्बरीष भगवान विष्णु को ही सबकुछ मानते थे और भक्त रूप में सरल जीवन बिताते. उन्हें दान-पुण्य, परोपकार करते देखकर लगता जैसे खुद भगवान ही सब कार्य हाथों से करा रहे हों, उनका मानना था कि ये सांसारिक सुख सब एक दिन नष्ट हो जाएंगी, पर भगवान की भक्ति ही उन्हें लोक, परलोक और सर्वत्र साथ रहेगी. राजा की निःस्वार्थ भक्ति से प्रसन्न हो भगवान ने सुदर्शन चक्र उनकी रक्षा के लिए नियुक्त कर दिया था. एक बार अम्बरीष ने विष्णुजी की पूजा कर महाभिषेक किया. ब्राह्मणों, पुरोहितों को भोजन कराया और दान दिया. इसके बाद ब्राह्मण-देवों की आज्ञा से अम्बरीष व्रत की समाप्ति पर पारण करने बैठे ही थे कि अचानक दुर्वासा आ गए. अम्बरीष ने आदर से बिठाया और भोजन के लिए प्रार्थना की तो दुर्वासा ने कहा, राजन रुको, मैं नदी में स्नान करके आ रहा हूं. मगर नदी पहुंचकर वे स्नान-ध्यान में इतना डूब गए कि याद ही न रहा कि राजा अम्बरीष बिना उन्हें भोजन कराए व्रत पारण नहीं करेंगे. द्वादशी खत्म होने को थी, तिथि रहते पारण न करने पर व्रत खण्डित होता और दुर्वासा को खिलाएं बिना पारण नहीं हो सकता था. परेशान अम्बरीष को ब्राह्मणों ने सलाह दी कि द्वादशी समाप्त होने में थोड़ा समय है, पारण तिथि ही होना चाहिए, आप सिर्फ जल पीकर पारण करें. जल पीने से भोजन का दोष नहीं लगेगा.More Related News