51 साल उम्र, 22 साल तक किया संघर्ष, अब घर-घर में पहचाने जाते हैं गजराज राव
AajTak
गजराज राव को बधाई हो से पहले भी कई फिल्मों में सपोर्टिंग किरदार निभाते देखा जा चुका है. हालांकि, अपने करियर में उन्होंने खूब संघर्ष किया था. इसके बारे में गजराज राव कई बार बात भी कर चुके हैं. गजराज ने बताया था कि कैसे मुंबई में काम की तलाश करते हुए उनकी जेब में मात्र 6 रुपये बचे थे. जानें पूरी कहानी.
बधाई हो के पापा जी तो आपको याद होंगे. एक्टर गजराज राव का ये किरदार मॉडर्न दर्शकों के बीच काफी फेमस है. बॉलीवुड में नई पहचान बना चुके गजराज जल्द ही एक अलग और मजेदार फिल्म 'थाई मसाज' में नजर आने वाले हैं. लेकिन आज लीड रोल वाली फिल्मों में नजर आने वाले गजराज राव ने कई मुश्किल भरे लम्हों को जिया है. बधाई हो से पहले भी कई फिल्मों में सपोर्टिंग किरदार निभाते वो दिखे. हालांकि पहचान मिलने में उन्हें लंबा समय लगा. अपने करियर के संघर्ष के बारे में गजराज राव कई बार बात कर चुके हैं. आइए जानते हैं.
गरीबी में बीता बचपन
गजराज राव का जन्म राजस्थान के डूंगरपुर जिले के छोटे से गांव झाखड़ी में हुआ था. उन्होंने पढ़ाई दिल्ली में की. गजराज के पिता भरत राव रेलवे में काम करते थे. उनकी मां प्रेम राव हाउसवाइफ थीं. गजराज को पढ़ाई खास पसंद नहीं थी, लेकिन उनके घर के हालात भी ऐसे नहीं थे कि वो कुछ और कर पाएं. ग्रैजुएशन पूरा करने के बाद वो छोटा-मोटा काम कर घर में आर्थिक मदद करते थे.
गजराज ने एक इंटरव्यू में इस बारे में बताया था. उन्होंने कहा था, '16-17 साल की उम्र में मेरी जिंदगी उस तरह की थी जैसे तूफान में समुद्र के बीच में नाव हिलती-डुलती है. वो नाव किनारे आएगी कि नहीं आएगी ये भी पता नहीं था. उसी दौरान थियेटर मेरी जिंदगी में आया और यूं लगा कि तूफान में फंसी कश्ती को सहारा मिल गया हो.'
थिएटर ने दिया जीवन को नया मोड़
उन्होंने आगे बताया था, 'मुझे अपने ही दोस्तों को घर बुलाने में शर्म आती थी. सोचता था कि मेरा घर छोटा-सा है और मेरे सारे दोस्त रईस परिवारों से है. बाद में थियेटर ने मेरी जिंदगी को नया मोड़ दिया. मैंने साहित्य पढ़ा. अच्छे लेखकों को पढ़ा और समझ ये आया कि दिमाग के जो जाले हैं, वे फालतू के हैं. ये भी समझ आया कि अंग्रेजी बोलने वाले और बड़े बंगलों में रहने वाले सारे लोग बुरे नहीं होते. एक तरह से रंगमंच की दुनिया में मेरा पुनर्जन्म हुआ. इसी दौरान अखबारों में लिखने का मौका मिला. पहले लेख के ढाई सौ रुपये मिले, तो पिताजी को लगा कि अब लड़का कुछ कर लेगा.'