
हिंदुत्व के पैरोकार महान अशोक से इतने ख़फ़ा क्यों रहते हैं
The Wire
अशोक ने जिस भारत का तसव्वुर किया था, जिस तरह सब निवासियों के मिल-जुलकर रहने, प्रगति करने की बात की थी, उससे केंद्र में सत्तासीन हिंदुत्व वर्चस्ववादी हुकूमत और उनके समर्थकों को गहरी तकलीफ़ होती है.
‘इतिहास क्या है ? …वह इतिहासकार और तथ्यों के बीच निरंतर चलनेवाली निरंतर प्रक्रिया है, एक समााप्त न होने वाला संवाद जो वर्तमान और अतीत के बीच जारी रहता है.’ ‘बुद्ध के पश्चात यहां उनके अनुयायी पतित हो गए. उन्होंने इस देश की युगों प्राचीन परंपराओं का उन्मूलन आरंभ कर दिया. हमारे समाज में पोषित महान सांस्कतिक सद्गुणों का विनाश किया जाने लगा. अतीत के साथ के संबंध-सूत्रों को भंग कर दिया गया. धर्म की दुर्गति हो गई. संपूर्ण समाज-व्यवस्था छिन्न-विच्छिन्न की जाने लगी.
प्रख्यात ब्रिटिश इतिहासकार ईएच कार (1892-1982), जो मशहूर रहे हैं सोवियत यूनियन के इतिहास पर 14 खंडों में लिखी अपनी किताब ‘ए हिस्ट्री आफ सोवियत यूनियन’ के लिए, उन्होंने इतिहास की समझदारी को अपने अंदाज़ में प्रस्तुत किया था. राष्ट्र एवं उसके दाय के प्रति श्रद्धा इतने निम्न तल तक पहुंच गई कि धर्मांध बौद्धों ने बुद्ध धर्म का चेहरा लगाए हुए विदेशी आक्रांताओं को आमंत्रित किया तथा उनकी सहायता की. बौद्ध पंथ अपने मातृ समाज तथा मातृ धर्म के प्रति द्रोही बन गया.’
निस्संदेह, ऐसे लोगों, समूहों के लिए जिनकी समझदारी का प्रस्थान बिंदु ‘हम’ आर ‘वे’ की समझदारी के इर्द-गिर्द घूमता है, अतीत के साथ जारी यह अंतःक्रिया अक्सर बेहद बुरे किस्म के एकालाप में तब्दील हो जाती है, जहां कुल मिलाकर उसका असर वर्तमान में लोगों के मन मस्तिष्क को विषाक्त करने, पूर्वाग्रहों से लैस करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जहां फिर वह न अतीत से सही सबक निकाल सकते हैं और न ही उसके जरिये भविष्य का रास्ता तलाश सकते है.
जियानवादियों, इस्लामिस्ट की तरह हिंदुत्व वर्चस्ववादी भी इससे अलग नहीं हैं. ऐसी तमाम मिसालें आए दिन मिलती हैं, जो बताती हैं कि उनके इस संकीर्ण चिंतन ने उन्हें हास्यास्पद नतीजों तक पहुंचाया है.
