विवाह के पहले वर-वधु की कुंडली में नाड़ी दोष का पता लगाना क्यों है जरूरी, आखिर कुंडली मिलान में क्यों महत्वपूर्ण है नाड़ी दोष?
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Astrology : नाड़ी दोष होने पर आखिर क्यों नहीं करना चाहिए वर - वधु का विवाह? नक्षत्रों और चरणों की किन परिस्थितियों नहीं होता नाड़ी दोष. जाने क्या है रीजन? जीवनसंगिनी के साथ कैसी रहेगी ट्यूनिंग.
Astrology : व्यक्ति के जन्म लेने से मृत्यु तक 16 संस्कार किए जाते हैं. जिनका अपना अलग-अलग महत्व और आवश्यक है. सभी संस्कारों में सबसे महत्वपूर्ण संस्कार विवाह है और इसमें विवाह करने से पूर्व कुंडली मिलान करना अति आवश्यक होता है. विवाह के पहले वर-कन्या की कुंडली मिलान का आशय केवल परंपरा का निर्वाह करना नहीं है, यह भावी दंपत्ति के स्वभाव, गुण, प्यार तथा आचार-व्यवहार के संबंध में जानकारी देने में सहायक होता है. जब तक समान आचार-विचार वाले वर-कन्या नहीं मिलते, तब तक उनका वैवाहिक जीवन सुखमय नहीं हो सकता है.
कुंडली मिलान करते समय वर- वधु के 36 गुणों का मिलान किया जाता है. जिसमें नाड़ी दोष बेहद महत्व रखता है. शास्त्रों में यह उल्लेख मिलता है कि नाड़ी दोष केवल ब्राह्मण वर्ग में ही मान्य है. समान नाड़ी होने पर पारस्परिक विकर्षण तथा असमान नाड़ी होने पर आकर्षण पैदा होता है. जिस व्यक्ति में जो गुण अधिक होता है वही उसकी प्रधान नाड़ी होती है. अतः प्रमुख नाड़ी से संबंधित तत्वों की वृद्धि से समान नाड़ी में वृद्धि होगी, जो शरीर के लिए हानिकारक होता है. ऐसे में यदि विवाह कर दिया जाए तो दंपत्ति को जीवन में कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. यहां तक कि दोनों के बीच अलगाव तक की स्थिति भी उत्पन्न हो सकती है.