
राजनीति में भाषा की शालीनता गुज़रे दिनों की बात हो चुकी है
The Wire
गुजरात के लोग अशिष्ट, भद्दे और असभ्य बयानों के आदी हो चुके हैं. हमारे लिए यह सब सामान्य हो चुका है. यहां ‘100 करोड़ नी गर्लफ्रेंड’ एक चुटकुला बन जाता है और प्रधानमंत्री मोदी की स्त्रीविरोधी टिप्पणियां उनके ‘सेंस ऑफ ह्यूमर’ के सबूत के तौर पर तालियां बटोरती हैं.
अहमदाबाद: राहुल गांधी को उनके ‘सभी चोर, चाहे वह नीरव मोदी हों, ललित मोदी हों या नरेंद्र मोदी, उनके नाम में मोदी क्यों है?’ वाले बयान के लिए संसद की सदस्यता के लिए अयोग्य क़रार दे दिया गया.
गुजरात के किसी भी पत्रकार के लिए राहुल गांधी का यह बयान एक नीरस और लापरवाह राजनीतिक बयान से ज्यादा कुछ नहीं है. वजह यह है कि हम में से कई नरेंद्रभाई मोदी को स्थाई तौर पर और लगातार देखते-सुनते रहे हैं. अगर अपनी बात करूं, तो मैं उस समय से उन्हें देखती आई हूं, जब मैं इंडियन एक्सप्रेस में युवा रिपोर्टर थी और सोमनाथ से अयोध्या रथयात्रा के गुजरात चरण को कवर कर रही थी. 1995 में गुजरात में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार बनने में उनकी कड़ी मेहनत का हाथ माना गया. उसके बाद उनका निर्वासन शुरू हुआ और 2001 में गुजरात में भूकंप आने के बाद वे ‘दैवीय तरीके से’ फिर प्रकट हुए.
तो, 1990 के दशक से 2001 तक नरेंद्र मोदी एक लक्ष्य केंद्रित, ठीक-ठाक पढ़े-लिखे व्यक्ति थे, जिनकी सबसे बड़ी ताकत जनता के मूड को भांपना था. वे अक्सर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सैकड़ों कार्यकर्ताओं को बस में बैठाने के काम की निगरानी करते थे. वे कांग्रेस के भ्रष्टाचार की बात करते थे, भाई-भतीजावाद की बात करते थे, कि कांग्रेस सिर्फ हाशिये के लोगों और गरीबों की पार्टी है, कि कांग्रेस सवर्ण समुदाय को नुकसान पहुंचा रही है. यह काम कर गया. लेकिन अगर निष्पक्ष तरीके से कहा जाए तो उस वक्त उन्होंने अशिष्ट, विभाजनकारी और असभ्य भाषा का इस्तेमाल नहीं किया.
यहां तक कि मैं उनके मुस्लिम हज्जाम से भी मिली थी, जो कांकरिया के नजदीक 20 वर्षों से ज्यादा समय तक उनकी दाढ़ी ट्रिम करता था. वह मोदी के बारे में अच्छी बातें करता था. संक्षेप में कहें, तो उस समय तक मोदी कोई ‘कल्ट’ नहीं बने थे. लेकिन ऐसा हुआ 2002 में.
