यूपी: क्या चुनाव से पहले योगी कैबिनेट का विस्तार जातीय समीकरण साधने की क़वायद है
The Wire
उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार मंत्रिमंडल विस्तार में पिछड़ी मानी जाने वाली जातियों के नेताओं को जगह देकर उनकी शुभचिंतक होने का डंका पीट रही है. हालांकि जानकारों का सवाल है कि यदि ऐसा ही है तो प्रदेश के यादवों, जाटवों और राजभरों पर उसकी यह कृपा क्यों नहीं बरसी?
गत सात जुलाई को नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले केंद्र के और 26 सितंबर को योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाले उत्तर प्रदेश के भाजपाई मंत्रिमंडलों के विस्तार में दलित व पिछड़ी जातियों को, निस्संदेह, उत्तर प्रदेश के अगले वर्ष के विधानसभा चुनाव के मद्देनजर, दी गई ‘तरजीह’ को कई दृष्टिकोणों से देखा जा रहा है.
देखा भी क्यों न जाए, इनके बाद भाजपाई खेमों द्वारा अप्रत्याशित रूप से मंत्रियों की जातियों का प्रचार करके उनके ‘जाति भाइयों’ को पटाने की कोशिश की जा रही है. जताया जा रहा है कि देश की राजनीति में एक भाजपा ही उनकी वास्तविक शुभचिंतक है. शेष सारी पार्टियां तो उन्हें वोट बैंक में बदलकर इस्तेमाल करती रहीं, जबकि बदहाली की नियति बदलने के लिए कतई कुछ नहीं किया.
यहां यह नहीं कह सकते कि इससे पहले जाति के आधार पर मंत्री बनाए ही नहीं जाते थे, बनाए जाते थे, लेकिन थोड़ी परदेदारी रखी जाती थी. इस तरह उनकी जाति का प्रचार करके उन्हें किसी का सगा और किसी का सौतेला नहीं बनाया जाता था. लेकिन आज डंका पीटा जा रहा है कि योगी के सात नये मंत्रियों में एक ब्राह्मण, तीन पिछड़े व अति पिछड़े और तीन दलित हैं.
इसी तरह नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश से जो सात नये केंद्रीय मंत्री बनाए, उनमें अनुप्रिया पटेल समेत, जिन्हें उनकी कुर्मी जाति के मोहभंग के अंदेशे से निपटने के लिए पद दिया गया, तीन पिछड़ी जाति के हैं.