यूक्रेन से भारतीय छात्रों को निकालने में मोदी सरकार के 'ऑपरेशन गंगा' पर उठते सवाल
BBC
यूक्रेन में फँसे भारतीय छात्रों को देश वापस लाने के लिए किए जा रहे भारत सरकार के प्रयास पर सवाल उठ रहे हैं. क्या कर सकती थी सरकार और अभी क्या कर सकती है, जानिए क्या है इस पर विश्लेषकों की राय.
साल 1990 की बात है. तब शमा मोहम्मद 17 साल की थीं. वो कुवैत में रह रही थीं जब इराक़ ने हमला बोला. उस वक़्त भारत सरकार ने उनको सुरक्षित वहाँ से कैसे निकाला, इस बारे में उन्होंने बीबीसी से अपना अनुभव साझा किया.
"1990 के अप्रैल में 11वीं क्लास की पढ़ाई पूरी कर मैं 12वीं में बस दाख़िल ही हुई थी. अगस्त के महीने में वहाँ स्कूलों में तब छुट्टियाँ होती थी. इस वजह से अपने पूरे परिवार, माता-पिता और दो छोटे भाई बहन के साथ मैं कुवैत में अपने घर पर ही थी. पापा वहाँ एक बैंक में काम करते थे.
2 अगस्त को सुबह-सुबह परिवार के जानने वालों ने घर पर फ़ोन कर बताया कि आज घर से बाहर नहीं निकलना, गोलीबारी शुरु हो गई है. तब तक पापा ऑफ़िस के लिए निकल चुके थे. परिवार परेशान था कि वो घर वापस कैसे लौटेंगे, लेकिन वो सुरक्षित घर लौटे.
फिर कुवैत से बस से हम बग़दाद गए. वहाँ कोई दिक़्क़त नहीं हुई. लोगों के अंदर भारतीयों के प्रति कोई ग़ुस्सा नहीं था. बग़दाद से हवाई जहाज़ से हम जॉर्डन की राजधानी ओमान पहुँचे. फिर ओमान के रास्ते हमें भारत लाया गया. भारत में हमारा पूरा परिवार मुंबई एयरपोर्ट पहुँचा. फिर वहाँ से हमें केरल ट्रेन से भेजा गया. हमारा पूरा ख़र्चा भारत सरकार ने उठाया. तब हमारे बैंक अकाउंट तक फ्रीज़ कर दिए गए थे."
अब शमा का पूरा परिवार केरल में रहता है. वो पेशे से डेंटिस्ट हैं, साथ ही कांग्रेस की प्रवक्ता भी हैं.