म्यांमार: हिंसक संघर्षों के चलते देश में अब गृहयुद्ध जैसे हालात
BBC
संघर्ष निगरानी समूह एकलेड के आंकड़ों के मुताबिक़, अब पूरा देश हिंसा की चपेट में है. मौजूदा हिंसक संघर्ष पहले से कहीं ज़्यादा संगठित हो गया है और यह शहरों तक जा पहुंचा है.
म्यांमार में हाल के दिनों में सेना और संगठित लोगों के समूह के बीच हिंसक संघर्षों में तेज़ी आई है. नए आंकड़ों से बीबीसी को यह बात पता चली है. सेना के ख़िलाफ़ हिंसक लड़ाई में ढेरों युवा शामिल हैं जो अपनी जान को जोख़िम में डालकर यह संघर्ष कर रहे हैं. एक साल पहले जुंटा के शासन पर काबिज होने के विरोध में यह संघर्ष हो रहा है. यह संघर्ष इतना ज़्यादा बढ़ चुका है कि अब स्थिति संघर्ष से कहीं ज़्यादा गंभीर गृह युद्ध तक पहुंच चुकी है.
संघर्ष निगरानी समूह एकलेड (आर्म्ड कंफ्लिक्ट लोकेशन ऐंड इवेंट डेटा प्रोजेक्ट) के आंकड़ों के मुताबिक पूरा देश अब हिंसा की चपेट में है. ज़मीनी हालत के मुताबिक भी हिंसक संघर्ष अब कहीं ज़्यादा संगठित तौर पर देखने को मिल रहा है और अब यह शहरों तक पहुंच चुका है. पहले शहरी हिस्सों में सशस्त्र संघर्ष की स्थिति नहीं थी.
इस संघर्ष में अब तक कितने लोगों की मौत हुई है, इसकी पुष्टि करना बेहद मुश्किल है लेकिन एकलेड ने स्थानीय मीडिया सहित दूसरी रिपोर्टों के आधार पर अनुमान लगाया है कि बीते एक साल के सैन्य शासन के दौरान म्यांमार में क़रीब 12 हज़ार लोग मारे गए हैं. म्यांमार में हिंसक संघर्षों में तेज़ी अगस्त, 2021 के बाद देखने को मिली है.
सैन्य तख़्तापलट के बाद, सेना ने देश भर में शुरू हुए विरोध प्रदर्शन को कुचलने के लिए जो कार्रवाई की, उसमें काफ़ी लोग मारे गए थे. एकलेड के मुताबिक इसके बाद से आम लोगों के साथ संघर्ष के चलते मरने वाले लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है.
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग की प्रमुख मिचेल बाकेलेट ने बीबीसी को दिए इंटरव्यू में कहा है कि म्यांमार के संघर्ष को अब गृह युद्ध कहा जाना चाहिए और देश में लोकतंत्र की वापसी के लिए अब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को कहीं ज़्यादा मज़बूत क़दम उठाने की ज़रूरत है. उन्होंने कहा कि म्यांमार के ज़मीनी हालात विनाश की तरफ़ बढ़ रहे हैं और यह क्षेत्रीय स्थिरता के लिए चुनौती बन चुका है लेकिन अब तक अंतरराष्ट्रीय समुदाय स्थिति को लेकर तात्कालिकता से गंभीर नहीं हुआ है.