मुहर्रम पर विशेष: धनबाद के इमामबाड़े और केरल की मस्जिद में कुछ एक सा है
The Quint
Muharram:इमामबाड़े के सामने कहना तुम गलत कर रहे हो इमाम साहब इंसाफ करेंगे दोषी गुनाह कबूल कर लेते थे.Standing in front of Imambara, just saying that you are doing wrong, Imam Saheb will do justice, was to say that the guilty used to confess crime.
झारखंड ( jharkhand) के धनबाद जिले का कतरास शहर. मध्य प्रदेश के रीवा स्टेट के राजाओं की यहां हवेली है. राजपरिवार धनबाद के तीन हिस्से झरिया, कतरास और डुमरा (नावागढ़) में बसे हैं. सभी जगह एक-एक गढ़ हैं. कतरास के अंतिम राजा पूर्णेन्दु नारायण सिंह का निधन हो चुका है. उनके बड़े बेटे चन्द्रनाथ सिंह राजगद्दी संभाल रहे हैं.अब राजपाट नहीं रहा, लेकिन व्यवसाय और सम्मान पूर्ववत ही हैं. कतरास राजागढ़ के बाहर के इमामबाड़ा पर यहां चर्चा करना प्रासंगिक होगा. राजा तालाब के बगल में यह स्थित है. आज इस परिसर की स्थिति ठीक नहीं है, लेकिन कभी यह परिसर गुलजार रहता था. कतरास राज परिवार आज भी इमामबाड़े की देखरेख करते हैंचन्द्रनाथजी कहते हैं लोग इबादत गृहों में नमाज़ पढ़ते हैं. यह तो व्यायाम है. आसन होता है. एकसाथ ग्रुप में पढ़ते हैं तो मीट टुगेदर भी हो जाता है. मन की चंचलता दूर हो जाती है. तन-मन दोनों साफ हो जाते हैं। वज़ू करने का शायद इसीलिए विधान किया गया है.मुहल्ले में एक मुस्लिम परिवार रहता थामुहल्ले में अधिकांश हिन्दू हैं कुछ मुस्लिम परिवार रहते थे, पहले एक मुस्लिम परिवार रहता था. उसके मुखिया राजघराने में बत्तियां जलाने का काम करते था, बत्तियों में तेल डालकर तैयार करना पड़ता था. 131 लाइट अलग-अलग कोनों में जलाने का रिवाज था. फसफरास मतलब जलना होता है, इसलिए बत्ती जलानेवाले मुस्लिम का नाम फरास बूढ़ा पड़ा था. मुहल्ले का नाम फरास कुल्ही, हालांकि वर्तमान में एक भी मुस्लिम परिवार यहां नहीं है, लेकिन इमामबाड़ा है और मुहर्रम में यहां से तजिया भी निकलता है, यह तजिया पूरे शहर में जुलूस में सबसे आगे होता है, तजिए के जुलूस को किले की डेहरी तक ले जाने की परंपरा आज भी है.राजा के इस इमामबाड़े के कारण पहले यहां अपराध भी नहीं होते थे. भाईचारा तो था ही, अधिकांश विवाद कोर्ट नहीं जाते थे. इमामबाड़े के सामने खड़ा होकर सिर्फ इतना कहना कि तुम गलत कर रहे हो इमाम साहब इंसाफ करेंगे बोलना था कि दोषी गुनाह कबूल कर लेते थे.कतरास में ताजिया का जो जुलूस निकलता है, उसमें सबसे पहले राजा साहब का यही तजिया रहता है. रलतीफ,शमसुद्दीन, जाकी... कई लोग मुहर्रम के समय इसका रंग रोगन कराने आते थे. आज भी राज परिवार के लोग इस परंपरा को निभाते हैं. इमामबाड़ा आज भी है, लोग इसे दरगाह स्थान भी कहते हैं. यही तजिया सबसे आग...More Related News