
माँ का नाम बच्चों को क्यों नहीं देते सरकारी दस्तावेज़?
BBC
मद्रास हाई कोर्ट में एक याचिकाकर्ता ने सरकारी दस्तावेज़ों में माँ का नाम शामिल करने की अपील की है. इससे पहले भी कई लोग इस तरह की कोशिशें कर चुके हैं.
माँ शब्द का ज़िक्र आते ही अक्सर चारदीवारी में रहने वाली वो महिला जो चूल्हा-चौका संभालती है, सबकी देखभाल करती है- जैसी बातें ज़हन में आती हैं. वो चाहे आर्थिक रूप से सक्षम भी हों, लेकिन उनकी भूमिका में यही ज़िम्मेदारियाँ कर्तव्य के नाम पर जोड़ दी जाती हैं.
लेकिन जब माँ से बच्चों की पहचान की बात आती है, तो वो दस्तावेज़ों से नदारद मिलती है.
मद्रास हाई कोर्ट में हाल ही में एक जनहित याचिका डाली गई. इस याचिका में कोर्ट को सरकारी फ़ॉर्म, दस्तावेज़, शपथ-पत्र, सर्टिफिकेट, लाइसेंस और अर्ज़ियों में माँ का नाम शामिल किए जाने का निर्देश देने की अपील की गई है.
याचिकाकर्ता का कहना है कि लोगों की पहचान केवल पिता के नाम से ही नहीं, बल्कि माँ के नाम से भी होनी चाहिए, क्योंकि एक बच्चे की ज़िंदगी में दोनों की बराबर ज़िम्मेदारी होती है.
इस मामले में मद्रास हाई कोर्ट ने संबंधित मंत्रालय/प्राधिकरणों को नोटिस जारी किया है. इस मामले की सुनवाई इसी साल के नवंबर महीने में होगी.
