
मध्य प्रदेश: सत्ता और विपक्ष के बीच ओबीसी आरक्षण को लेकर हो रही खींचतान की वजह क्या है
The Wire
सुप्रीम कोर्ट के एक फ़ैसले से राज्य की भाजपा सरकार और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के बीच इस बात पर घमासान मचा है कि दोनों में कौन बड़ा ओबीसी हितैषी है और कौन विरोधी. इस तनातनी का केंद्रबिंदु राज्य के पंचायत चुनाव रहे, जिन्हें लगभग सभी तैयारियां पूरी होने के बावजूद ऐन वक़्त पर निरस्त करना पड़ा.
मध्य प्रदेश की राजनीति में बीते कुछ सालों से जाति इस कदर हावी है कि वह चर्चाओं से जाती ही नहीं है. पदोन्नति में आरक्षण, एट्रोसिटी एक्ट आंदोलन और सवर्ण आंदोलन को झेल चुकी सूबे की सियासत बीते कुछ समय से अनुसूचित जनजाति वर्ग यानी आदिवासियों पर केंद्रित थी. लेकिन अब अचानक यह पूरी तरह से अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) पर शिफ्ट हो गई है.
सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले से राज्य की भाजपा सरकार और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के बीच यह लेकर घमासान मचा है कि दोनों में कौन बड़ा ओबीसी हितैषी है और कौन विरोधी? घमासान का केंद्रबिंदु राज्य के पंचायत चुनाव रहे, जिन्हें लगभग सभी तैयारियां पूरी होने के बावजूद ऐन वक्त पर निरस्त करना पड़ा.
करीब 23,000 जिला पंचायत, जनपद पंचायत और ग्राम पंचायत के लगभग 4 लाख पदों पर तीन चरणों में चुनाव होने थे. 6 जनवरी, 16 जनवरी और 28 जनवरी को मतदान प्रस्तावित था. मध्य प्रदेश निर्वाचन आयोग ने पूरी चुनावी तैयारी कर ली थी. दावेदारों में चुनाव चिह्न तक बंट गए थे. चुनावी सामग्री छप गई थी. लेकिन, प्रथम चरण के मतदान से महज दस दिन पहले आयोग को मजबूरन चुनाव निरस्त करना पड़ा और प्रदेश में बीते दो सालों से टलते आ रहे पंचायत चुनाव फिर से अनिश्चित काल के लिए टल गए.
इससे पहले, महीने भर तक राज्य की राजनीति में नाटकीय घटनाक्रम चला. जो कांग्रेस-भाजपा की नूरा-कुश्ती से शुरू होकर अदालतों के चक्कर काटते हुए ओबीसी आरक्षण पर आकर केंद्रित हो गया और अंतत: ग्रामीण निकायों के गठन में बाधक बना.
