बुंदेलखंड पैकेज: योजनाएं आईं, करोड़ों रुपये बहाए गए, लेकिन ज़मीन पर कुछ नहीं बदला
The Wire
विशेष रिपोर्ट: बुंदेलखंड पैकेज का उद्देश्य सिंचाई, पेयजल, कृषि, पशुपालन समेत विभिन्न क्षेत्रों में सुधार कर पूरे इलाके का समग्र विकास करना था, लेकिन इसके तहत बनीं संरचनाओं की दयनीय स्थिति इसकी असफलता की कहानी बयां करती है. मंडियों को अभी भी खुलने का इंतज़ार है, उचित मूल्य नहीं मिलने से किसान ज़्यादा पानी वाली फ़सल उगाने को मजबूर हैं, जो कि क्षेत्र में एक अतिरिक्त संकट की आहट है.
चित्रकूट/बांदा/महोबा: वो जनवरी का महीना था. कड़ाके की ठंड पड़ रही थी. टीवी, रेडियो और अखबार लोगों में नए साल का जश्न भर रहे थे और सरकार की उपलब्धियां गिना रहे थे. लेकिन इन सब के बीच बुंदेलखंड क्षेत्र के 55 वर्षीय किसान माधव प्रसाद काफी तनाव में थे. उन्होंने करीब पांच बीघा खेत में गेहूं और सरसों की फसल लगाई हुई थी, लेकिन सिंचाई न होने के चलते सब सूख रहा था. पहला, ये कि योजना के तहत बनीं विभिन्न संरचनाओं जैसे कि कुआं, चेकडैम, बांध, नहर इत्यादि की क्या स्थिति है? कई दिनों बाद उस रोज रात में अचानक से लाइट आई. डीजल से सिंचाई कराने के लिए उनके पास पैसे नहीं थे, इसलिए प्रसाद इस मौके को छोड़ना नहीं चाहते थे. अपनी झोपड़ी के एक कोने में लगे बिस्तर से वे उठे और टॉर्च लेकर कुएं की तरफ भागने लगे. रात में ठंड भरी तेज हवाएं चल रही थीं, प्रसाद ने बड़ी उम्मीद के साथ पंप को चालू किया. दूसरा, ये कि इनसे क्या किसी तरह का लाभ मिला है, क्या क्षेत्र की सिंचाई की समस्या का समाधान हुआ है, क्या परती भूमि की संख्या कम हुई है? मशीन को चलते हुए करीब 20 मिनट हुआ होगा कि पाइप में पानी आना बंद हो गया. उन्होंने कुंए में झांककर देखा तो पानी खत्म हो गया था. वैसे ये समस्या उनके लिए नई नहीं थी. पिछले कई सालों से उन्हें इन्हीं मुश्किलों के साथ सिंचाई करना पड़ा है. तीसरा और आखिरी पहलू ये देखा गया है कि सरकार अपनी नाकामियों को छिपाने के लिए बुंदेलखंड को लेकर उसकी जिस भौगोलिक एवं प्राकृतिक स्थिति का बहाना बनाती है, उसमें कितनी सच्चाई है? इस आस में वे कुएं पर बैठ गए कि पानी वापस आ जाएगा. वहां बैठे-बैठे पूरी रात बीत गई. आसमान से तारे गायब हो गए और चेहरे पर सूरज की किरणें पड़ने लगीं, लेकिन पानी नहीं आया. तब तक लाइट भी चली गई. अंतत: वे उदास होकर वापस घर लौट आए.More Related News