
पेरियार ललई सिंह को जानना क्यों ज़रूरी है
The Wire
पुस्तक समीक्षा: पांच भागों में बंटी धर्मवीर यादव गगन की ‘पेरियार ललई सिंह ग्रंथावली’ इस स्वतंत्रता सेनानी के जीवन और काम के बारे में बताते हुए दिखाती है कि आज़ादी के संघर्ष में तमाम आंदोलनकारी कैसे एक-दूसरे से न केवल जुड़े हुए थे बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर बहुजन एका की कार्रवाइयों को अंजाम दे रहे थे.
धर्मवीर यादव गगन ने पेरियार ललई सिंह ग्रंथावली का संकलन-संपादन किया है. संकलन भी ऐसा-वैसा नहीं बल्कि देश के कोने-अंतरे में बिखरी सामग्री इकट्ठा करके, उसे विषयवार सजाकर पांच भागों में प्रस्तुत किया है.
तो सबसे पहले यह जान लेना ज्यादा उचित होगा कि पेरियार ललई सिंह कौन थे?
ललई सिंह यादव एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे जिन्होंने अपना नाम बदलकर पेरियार ललई सिंह कर लिया. यह एक सामान्य सूचना भर नहीं है कि किसी व्यक्ति को अपने उपनाम से दिक्कत हो गई तो उसने नाम बदल लिया बल्कि यह वाक्य भारत की सदियों पुरानी जाति व्यवस्था से निकलने की एक व्यक्ति की कोशिश को बयान करता है.
पेरियार ललई सिंह का जन्म कानपुर में 1 सितंबर 1911 को हुआ था, उनके पिता किसान थे जिनके पास आमों का एक बाग और खेती लायक जमीन थी. मिडिल यानी कक्षा सात तक की पढ़ाई के बाद वे कुछ दिनों तक फॉरेस्ट गार्ड रहे, 1931 में विवाह हुआ और दो वर्ष बाद ग्वालियर रियासत की सेना में भर्ती हो गए. 1857 की गदर में तो सिपाही विद्रोह गाय और सुअर की चर्बी के कारतूसों के कारण तात्कालिक रूप से भड़का था और जिसके गहरे आर्थिक और सांस्कृतिक कारण थे लेकिन ब्रिटिश भारत और रियासती भारत में अस्पृश्यता की समस्या गहरे तक जड़ जमाए हुए थी.
