
नैयरा नूर: ग़म-ए-दुनिया से घबराकर, तुम्हें दिल ने पुकारा है
The Wire
स्मृति शेष: नैयरा नूर ग़ालिब और मोमिन जैसे उस्ताद शायरों के कलाम के अलावा ख़ास तौर पर फ़ैज़ साहब और नासिर काज़मी जैसे शायरों की शायरी में जब 'सुकून' की बात करती हैं तो अंदाज़ा होता है कि वो महज़ गायिका नहीं थीं, बल्कि शायरी के मर्म को भी जानती-समझती थीं.
ग़ज़ल-गायकी ख़ास तौर पर फ़ैज़-गोई की कोई हालिया अतीत-कथा कहनी हो तो मैं उसमें नैयरा नूर का नाम सबसे पहले लूंगा.
शायद इसलिए जब नूर ने दुनिया को अलविदा कहा तो यूं महसूस हुआ जैसे फ़ैज़ साहब की शायरी ने चुप की कोई ‘तान’ ली हो.
क़िस्सा ये कि हम जिसकी आवाज़ में गुम थे, वो अब अपनी आवाज़ में चुप है…
फ़ैज़ साहब के हवाले से मैं उनकी गायकी को फ़ैज़-गोई, आप चाहें तो इसे एक तरह का सस्वर-पाठ समझें; इसलिए कह रहा हूं कि फ़ैज़ के कलाम में जो काव्य-संगीत है वो हू-ब-हू नूर की गायकी में सुनाई पड़ता है, कहीं कोई लफ़्ज़ या एहसास दबता हुआ और छूटता हुआ नहीं जान पड़ता.
