नीरज चोपड़ा ने मिल्खा सिंह से शुरू हुई भारत की 100 साल पुरानी तलाश कैसे पूरी की?
BBC
नीरज चोपड़ा से पहले ओलंपिक खेलों के इतिहास में दो बार दो भारतीय एथलेटिक्स का ओलंपिक मेडल हासिल करने के बेहद क़रीब पहुंचे लेकिन सेकेंड के भी सौवें हिस्से से पदक से चूक गए थे.
नीरज चोपड़ा ने टोक्यो ओलंपिक में वह कारनामा कर दिखाया है जो भारतीय इतिहास में इससे पहले कभी नहीं हुआ था. वो ओलंपिक खेलों की एथलेटिक्स प्रतियोगिता में मेडल लाने वाले पहले भारतीय खिलाड़ी बन गए हैं. आधुनिक ओलंपिक खेलों का इतिहास भी 125 साल पुराना है. इन सवा सौ सालों में अब तक कोई भारतीय ट्रैक एंड फ़ील्ड प्रतियोगिताओं में कोई मेडल नहीं हासिल कर सका था. वैसे भारत ने 1920 के एंटवर्प ओलंपिक खेलों से अपने खिलाड़ियों को ओलंपिक भेजना शुरू किया था, इसलिए कहा जा रहा है कि नीरज चोपड़ा ने 100 साल से चले आ रहे मेडल के सूनेपन को ख़त्म कर दिया है. नीरज ने जो कामयाबी टोक्यो में हासिल की है, उसकी शुरुआत के बारे में भारतीय एथलेटिक्स संघ के पूर्व सीईओ मनीष कुमार ने बताया, "नीरज ने ऐतिहासिक कामयाबी हासिल की. उनकी कामयाबी में उनका, उनके परिवार का और उनके कोच का तो योगदान है ही. एथलेटिक्स फ़ेडरेशन भी उन्हें हर तरह की सुविधाएं मुहैया करा रहा था." मनीष कुमार इन दिनों एथलेटिक्स फ़ेडरेशन से नहीं जुड़े हैं लेकिन वे कहते हैं कि ललित भनोत की अगुवाई में 10 साल पहले फ़ेडरेशन ने जैवलीन थ्रो के एथलीटों को तैयार करने की जो मुहिम शुरू की थी, उसका नतीजा अब मिला है.More Related News