
तालिबान के मामले में पाकिस्तान को समझने में नाकाम रहा अमेरिका, चेतावनियों के बावजूद होती रही भूल पर भूल
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अफगानिस्तान (Afghanistan) में तालिबान (Taliban) की कामयाबी यानी उसका त्वरित कब्जा ये संकेत देता है कि अमेरिका, पाकिस्तान (Pakistan) को समझने में पूरी तरह से नाकाम रहा है.
नई दिल्ली: अफगानिस्तान (Afghanistan) में तालिबान (Taliban) की कामयाबी यानी उसका त्वरित कब्जा ये संकेत देता है कि अमेरिका, पाकिस्तान (Pakistan) को समझने में पूरी तरह से नाकाम रहा है. पड़ोसी अफगानिस्तान के पूर्व उप-राष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह ने बहुत पहले ही पाकिस्तान-तालिबान (Pakistan-Taliban) गठजोड़ के बारे में कहा था कि पाकिस्तान के प्रति आम अफगानों के बीच फैली नफरत का मूल वजह तालिबान के लिए उसका समर्थन है. वहीं नवंबर 2020 में पूर्व अफगान राष्ट्रपति हामिद करजई (EX President Hamid Karzai) ने तालिबान का समर्थन करने के लिए पाकिस्तान को जवाबदेह ठहराने में राष्ट्रपति जो बाइडेन की विफलता का जिक्र किया था. करजई ने मार्च 2021 में अपनी बात को दोहराते हुए कहा था कि बाहरी ताकतों द्वारा अफगानों का एक-दूसरे के खिलाफ इस्तेमाल किया जा रहा है. वहीं पाकिस्तान अब तालिबान के माध्यम से अफगानिस्तान में रणनीतिक वर्चस्व हासिल करना चाहता है. US सीनेटर लिंडसे ग्राहम ने कहा था, 'अफगानिस्तान का युद्ध कुछ हफ्तों में खत्म हो सकता है अगर पाकिस्तान अपने इलाकों में तालिबान को सुरक्षित पनाह देने से इनकार कर दे.'
36 MW Class Gas Turbine Engine: नौसेना प्रमुख एडमिरल दिनेश के त्रिपाठी ने कॉन्फ्रेंस में बताया कि नौसेना अब पूरी तरह स्वदेशी 36 मेगावॉट क्लास गैस टर्बाइन इंजन, अगली पीढ़ी की डीजल-इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन सिस्टम. फुल-इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन तकनीक विकसित कर रही है. इनका पहला ऑपरेशनल संस्करण 2029 में नौसेना के जहाजों पर आने की उम्मीद है.

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