
तालिबान की आपसी कलह आई सामने, क्या ये विरोधियों के लिए है मौक़ा?
BBC
अफ़ग़ानिस्तान के फ़रयाब प्रांत में हुई घटनाओं ने एक बार फिर तालिबान के भीतर मौजूद जातीय और कबायली मतभेदों से पर्दा उठाया है. रिश्ते में ये दरार कितनी गहरी है?
अफ़ग़ानिस्तान के उत्तरी प्रांत फ़रयाब में हाल ही में पैदा हुई अशांति को दबाने में तालिबान क़ामयाब रहा. लेकिन इस असंतोष ने तालिबान के भीतर मौजूद जातीय और कबायली समूहों के उस मतभेद से पर्दा उठा दिया, जिसका फ़ायदा इस्लामिक स्टेट के चरमपंथियों के साथ ही हाल ही में गठित हुआ तालिबान विरोधी नेशनल रेज़िस्टन्स फ्रंट भी उठा सकता है.
इस साल जनवरी के मध्य में, तालिबान ने जानेमाने उज़्बेक कमांडर मख़दूम आलम को हिरासत में ले लिया था. इससे नाराज़ होकर उज़्बेक प्रदर्शनकारी और लड़ाके फ़रयाब प्रांत की राजधानी मायमाना की सड़कों पर उतर आए.
मख़दूम ने फ़रयाब, जोज़्जान और सर-ए-पोल जैसे उत्तरी प्रांतों में कई सालों तक तालिबानी बलों का नेतृत्व किया था.
तालिबान ने इन इलाकों में पश्तून से सैकड़ों अतिरिक्त सैनिकों को लाकर स्थिति पर काबू तो पा लिया लेकिन इससे पहले के दो दिन अराजकता भरे रहे. इन दो दिनों में पश्तून लड़ाकों को निहत्था कर दिया गया था. हिंसा की वजह से कई लोग मारे गए और कई घायल हुए.
तालिबान ने सर-ए-पोल में भी विशेष बलों के 2,500 सदस्यों को तैनात किया. इस प्रांत में भी ठीक ऐसी ही हिंसा और झड़पें शुरू होने की अफ़वाहें थीं.
