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ट्विटर विवाद : सोशल मीडिया कंपनियां कानूनी दायित्वों से क्यों हिचक रहीं, क्या उनकी आजादी अहम, जानिए साइबर विशेषज्ञ की राय

ट्विटर विवाद : सोशल मीडिया कंपनियां कानूनी दायित्वों से क्यों हिचक रहीं, क्या उनकी आजादी अहम, जानिए साइबर विशेषज्ञ की राय

NDTV India
Tuesday, June 08, 2021 10:36:44 AM UTC

सवाल कोरोना काल में तेजी से बढ़ती डिजिटल क्रांति के बीच बेहिसाब साइबर अपराधों (Cyber Criminals) का है. या फिर ऐसी कंपनियों को ज्यादा जिम्मेदार या जवाबदेह बनाया जाए या फिर गोपनीयता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और इंटरमीडिएरी (Intermediaries) होने का तर्क स्वीकार सब कुछ पहले जैसा बेरोकटोक चलने दिया जाए.

ट्विटर पर किसान आंदोलन से जुड़ी टूल किट(Twitter Toolkit) , फिर फेसबुक(Facebook) , गूगल समेत ऑनलाइन कंपनियों के लिए नए डिजिटल रूल्स 2021 (Digital Rules 2021 For Digital Companies), व्हाट्सऐप (Whatsapp) की प्राइवेसी पॉलिसी और अब आरएसएस (RSS) प्रमुख मोहन भागवत समेत संघ से जुड़े कुछ नेताओं के अकाउंट अनवेरिफाइड करने के मामलों ने भारत में सोशल मीडिया कंपनियों की भूमिका, जिम्मेदारी और जवाबदेही के सवालों को फिर सतह पर ला दिया है. सवाल इन कंपनियों और यूजर्स की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की भी है. साथ ही कोरोना काल में तेजी से बढ़ती डिजिटल क्रांति के बीच बेहिसाब साइबर अपराधों (Cyber Criminals) को लेकर भी है. ऐसी कंपनियों को ज्यादा जिम्मेदार या जवाबदेह बनाया जाए या फिर गोपनीयता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और इंटरमीडिएरी (Intermediaries) होने का तर्क स्वीकार सब कुछ पहले जैसा बेरोकटोक चलने दिया जाए. ऐसे ही जुड़े सवालों का जवाब साइबर लॉ और साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ पवन दुग्गल ने दिए हैं...सवाल1.क्या ट्विटर जैसी सोशल मीडिया कंपनी यह कहकर बच सकती हैं कि वे एक सिर्फ प्लेटफॉर्म हैं. उनके मंच पर किसी भी कंटेंट को लेकर उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं है, टूल किट या ब्लू टिक का मामला ही ले लें?जवाब -आईटी ऐक्ट धारा 70 इन सर्विस 21डब्ल्यू में इंटरमीडिए की परिभाषा, इसमें नेटवर्क सर्विस प्रोवाइडर, ट्विटर भी स्पष्ट तौर पर इंटरमीडिएरी है. आईटी ऐक्ट 79 बाईएन लार्ज थर्ड पार्टी जानकारी के लिए लाइबल नहीं बनाएंगे. पहला कि आईटी ऐक्ट रूल्स का पालन करें. गैरकानूनी गितविधि में शामिल न हों. पूरी निगरानी बरतें और जब बोला जाए कि अनावश्यक कंटेंट को रिमूव करें बिना किसी मूल कंटेंट को नष्ट किए.सवाल 2. क्या ये सोशल मीडिया कंपनियां भौतिक रूप से उस देश में न होने का तर्क देकर किसी देश के संप्रभु कानूनों और अधिकारों से परे होने का दावा कर सकती हैं?जवाब- आईटी ऐक्ट की धारा 1 और 75 स्पष्ट कहती है कि चाहे आप भारत हो या न हों, अगर आपकी सेवाएं देश में विद्यमान कंप्यूटर या फोन पर उपलब्ध होती हैं या उसे इंपैक्ट करती हैं तो आप भारतीय कानून के अधीन हैं. आईटी रूल्स 25 फरवरी 2021 से लागू किया है.इतने बड़े पैमाने पर नियम भारतीय आईटी कानून के तहत कभी नहीं आए. नियम 7 कहता है कि रूल्स का पालन नहीं किया तो कंपनियों को कानूनी जवाबदेही से छूट मिली हुई है तो वो वापस ले ली जाएगी. साइबर कानून के तहत उनकी जवाबदेही तय होगी. कंपनी और शीर्ष प्राधिकारियों को भी कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा. लेकिन कंपनियां न तो इन कानूनों का पालन करने और न ही कानूनी दायित्वों का वहन करने को तैयार हैं.सवाल 3. सोशल मीडिया कंपनियों के अधिकारों, यूजर्स की निजता और उनकी कानूनी जवाबदेही के बीच कैसा संतुलन बनाया जा सकता हैजवाब- नए आईटी रूल्स के तहत केंद्र सरकार को बहुत अधिक शक्तियां मिली हुई हैं, इसमें चेक बैलेंस नहीं है. ऐसे में दुरुपयोग की आशंका रहती है, खासकर राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों, आलोचकों, पत्रकारों के खिलाफ. लेकिन अभी केस अदालत के विचाराधीन है. अगर सरकार ही वकील, पुलिस और जज बनेगी तो यह सही नहीं है. पहले भी ऐसी शक्तियों का दुरुपयोग हुआ है. ऐसे में स्वतंत्र नियामक (रेगुलेटर ) भी अच्छा विकल्प है.सवाल 4. क्या दुनिया में ऐसा कोई डिजिटल फ्रेमवर्क नहीं है, जो इन कंपनियों के कामकाज और कानूनी दायित्वों को परिभाषित करता होजवाब- अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इंटरमीडिएरी या सोशल मीडिया के लिए ऐसी कोई नीति, संधि, कानून या डिजिटल फ्रेमवर्क नहीं है. ऐसे में हर देश ऐसी कंपनियों को लेकर अलग-अलग कानून और नियम-कायदे तय करते हैं. एक तरफ अमेरिका है, जिसने सेक्शन 231 कम्यूनिकेशन ऐक्ट बनाया है, जिसमें ऐसे प्लेटफॉर्म को कानूनी जवाबदेही से पूरी तरह छूट है. वहीं चीन जैसे देशों में पूरी तरह शिकंजा है.सवाल 5. ट्विटर जैसी डिजिटल कंपनियां नए आईटी रूल्स को मानने से इनकार कर सकती हैं. क्या शिकायतों, कानूनी अड़चनों पर उसकी कोई जवाबदेही नहीं बनती है.जवाब- इनक्रिप्शन या कोई तकनीक हो, लेकिन कानून के दुरुपयोग या उल्लंघन की इजाजत नहीं दी जा सकती. इंड टू इंड इनक्रिप्शन या गोपनीयता की आड़ में वो राष्ट्रीय सुरक्षा, आतंकवाद या आपराधिक मामलों में सहयोग से इनकार नहीं कर सकतीं. उन्हें कानूनी एजेंसियों का सहयोग करना ही होगा. साइबर अपराधी इसका दुरुपयोग कर सकते हैं और सर्विस प्रोवाइडर की पहचान नहीं छिपा सकते. मैसेज भेजने वाली की पहचान, आईपी एड्रेस आदि दे दीजिए. लेकिन सबका लेखा-जोखा देखना पड़े. कंपनियां कुछ खर्च नहीं करना चाहतींसवाल 6. क्या इन कंपनियों को अदालती फैसलों से कोई विशिष्ट शक्तियां मिली हुई हैंजवाब- सुप्रीम कोर्ट ने श्रेया सिंघल बनाम यूनियन ऑफ इंडिया केस में कह दिया था कि आप सर्विस प्रोवाइडर हैं. लिहाजा जब कोर्ट या सरकारी प्रवर्तन एजेंसियों का आदेश न हो, तब तक आप कुछ नहीं करेंगे. इस कारण डिजिटल क्षेत्र में साइबर अपराधों, बुलींग, उत्पीड़न पर पूरी तरह आंखें मूंद ली हैं. लेकिन उन्हें भी अपने स्तर पर निगरानी रखनी ही पड़ेगी.सवाल 7. डिजिटल कंपनियों पर ग्राहकों के यूजरनेम, पासवर्ड, फोन नंबर, क्रेडिट कार्ड डेट लीक होते रहते हैं. क्या ग्राहक उन्हें कोर्ट में नहीं घसीट सकताजवाब- भारत में आज पॉलिसी वैक्यूम की स्थिति है. डेटा प्रोटेक्शन, निजता (डेटा प्राइवेसी), साइबर सिक्योरिटी का विशिष्ट कानून नहीं है. ऐसे में इन कंपनियों को विवश करने की शक्ति कम हो जाती है. यूजर्स आईटी ऐक्ट की सेक्शन 43 के तहत केस दायर कर 5 करोड़ रुपये तक मुआवजा मांग सकते हैं. फौजदारी का भी मांग कर सकती हैं.सवाल 8. ट्विटर, फेसबुक, गूगल, इंस्टाग्राम का अपने विशिष्ट क्षेत्र में करीब-करीब एकाधिकार सा है, क्या ये डिजिटल साम्राज्यवाद की ओर नहीं ले जाता है.जवाब- डिजिटल वर्ल्ड में ट्विटर, गूगल, फेसबुक जैसी कंपनियों का अपने क्षेत्र में एकाधिकार सा है, लिहाजा ये कंपनियां मनमानी करती हैं. ट्विटर द्वारा कुछ नेताओं के अकाउंट से ब्लू टिक हटाना और फिर कुछ घंटों के बाद ही उसे बहाल कर देना इसका साफ संकेत है. अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का अकाउंट भी 2 साल के लिए सस्पेंड कर दिया गया है. ऐसे में नियमों और नीतियों को लेकर इनकी हठधर्मिता साफ झलकती है. यही लिहाज है कि वे भारत में स्थानीय कानूनों का पालन नहीं करना चाहतीं  सवाल 9. कोरोना काल में हर मामले में साइबर गतिविधि शामिल है. ऐसे मामलों के अंबार से कैसे निपटा जाएजवाब- भारत में साइबर अपराध संबंधी विशिष्ट कानून नहीं है. आईटी ऐक्ट और आईपीसी में कुछ धाराएं हैं, लेकिन वे मौजूदा गैरकानूनी साइबर गतिविधियों से निपटने में नाकाम हैं. 2008 में ज्यादातर साइबर अपराधों को जमानती बना दिया गया. इससे आरोपियों के लिए डिजिटल साक्ष्य या रिकॉर्ड नष्ट करने की आशंका बढ़ जाती है.  सवाल10. साइबर अपराध से निपटने में भारतीय एजेंसियां कितनी सक्षम हैंजवाब- साइबर सेल का पोर्टल तो बना दिया गया है, लेकिन उसमें से 5 फीसदी पर कार्रवाई नहीं हो पाती. कोरोना काल में 6 लाख करोड़ डॉलर गंवाए थे, जो 2021 के अंत तक 8 लाख करोड़ डॉलर तक पहुंच गया. ऐसे में जब साइबर अपराध इतने बड़े पैमाने पर हों तो डेडिकेटेड साइबर सेल, डेडिकेट साइबर पुलिस स्टेशन अति महत्वपूर्ण हो जाते हैं. देश में साइबर अपराधों में सिर्फ 1 फीसदी अपराधियों को ही सजा मिल पाती है. जरूरत है कि देश में अलग साइबर कानून के साथ विशिष्ट साइबर सिक्योरिटी एजेंसी और साइबर थाने बनाए जाएं. स्पेशन साइबर कोर्ट का भी गठन किया जाए ताकि लोगों को तुरंत राहत मिल सके.   
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