छठ का भाजपाईकरण एक और पवित्र अवसर को विकृत करने का प्रयास है
The Wire
छठ में कोई पंडित, पुरोहित नहीं होता, यह भाजपा के सांसद महोदय को किसी ने नहीं बताया. छठ बिना नदी या घाट के नहीं हो सकता, यह भी सांस्कृतिक मूर्ख ही बोल सकते हैं. असल बात है मन का पवित्र होना. मन में द्वेष, घृणा और दूसरे को नीचा दिखाने की सोच के साथ छठ की बात सोचना भी पाप है.
पुरखों ने बतलाया था, मन चंगा तो कठौती में गंगा. लेकिन परंपरा के पुजारी भारतीय जनता पार्टी के नेता उल्टा बतलाते हैं अपनी जनता को. मन को स्वच्छ करने गंगा या यमुना घाट जाना ही पड़ेगा. यमुना में भले ही गंदगी का झाग उफना रहा हो, उसी में डुबकी लगाना होगा वरना न तो छठी मैया प्रसन्न होंगी न सूर्य देवता का प्रसाद प्राप्त होगा.
यही समझ में आया जब भारतीय जनता पार्टी के एक सांसद को यमुनाजी के किनारे छठ के लिए घाट बनाते हुए देखा. वे अपनी ही सरकार के नुमाइंदे, यानी लेफ्टिनेंट गवर्नर साहब के आदेश का उल्लंघन करते हुए छठ व्रतधारियों की आस्था की रक्षा के लिए यमुना पहुंचे थे.
सांसद छठ करने वाली जनता के धार्मिक अधिकार की रक्षा करने के संकल्प से भरे हुए पहुंचे थे. छठ क्या होता है और क्या विधि है उसकी, यह जानने का आवश्यकता क्यों हो भला!
सो, खरना के दिन ही घाट पर दौरे में फलादि लेकर पूजा करवाते फोटो खिंचवाई. देखा, एक पंडित पूजा करवा रहा है. सांसद गहन संकल्पयुक्त भाव से माथे पर हाथ रखे पूजा करवा रहे हैं. फिर कुदाल लेकर घाट बनाते तस्वीर खिंचवाई.