
ख़ैबर दर्रा: जहां सिकंदर-ए-आज़म से लेकर अंग्रेज़ों तक, सबका गुरूर मिट्टी में मिल गया
BBC
ख़ैबर दर्रे पर जितने हमले हुए हैं, उतने हमले शायद ही दुनिया के किसी रास्ते या राजमार्ग पर हुए होंगे.
बचपन से हम बहुत सी जादू की कहानियां सुनते आये हैं, जिनमें कुछ ऐसी जगहों के क़िस्से होते हैं, जहां से एक कदम आगे जाने वाला या तो मर जाता है या जो पीछे मुड़कर देखता है वह पत्थर की मूर्ति बन जाता है. ऐसे ही वास्तविक दुनिया में, अगर किसी इलाक़े को यह दर्जा हासिल हो सकता है, तो वह पाकिस्तान में अफ़ग़ानिस्तान की सीमा से लगा हुआ ख़ैबर दर्रा है. जहां से अफगानिस्तान जाने और वहां से आने वालों को रास्ता अफरीदी कबाइलियों को नज़राना देना पड़ता था, यहां तक कि दुनिया पर विजय प्राप्त करने वाले महान विजेताओं को भी यहां अपना सिर झुकाना पड़ा. लगभग सभी इतिहासकारों ने अफरीदी कबीलों के बारे में लिखा है कि ये वो मुसीबत हैं जो जंग से प्यार करते हैं और उनका यही प्यार उनके दुश्मन की सबसे बुरी हार का कारण बनता है. विदेशी और स्थानीय लेखक इस बात से सहमत हैं कि ख़ैबर दर्रे पर जितने हमले हुए हैं, उतने हमले शायद ही दुनिया के किसी रास्ते या राजमार्ग पर हुए होंगे. दुनिया का ये मशहूर ख़ैबर दर्रा पेशावर से 11 मील की दूरी पर बने ऐतिहासिक द्वार 'बाब-ए-ख़ैबर' से शुरू होता है और यहां से लगभग 24 मील यानी तोरखम के स्थान पर पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान की सीमा पर ख़त्म होता है. जहां से लोग डूरंड रेखा को पार करके अफगानिस्तान में प्रवेश करते हैं.More Related News
