क्या यूक्रेन से लौटकर आए छात्रों को नेताओं द्वारा चुनाव प्रचार सामग्री में बदल दिया गया
The Wire
क्या वे छात्र संस्कारहीन हैं जो हवाई अड्डे पर छवि निर्माण को तैनात मंत्रियों की अनदेखी करते निकले जा रहे थे? क्या वह छात्र बदतमीज़ है जिसने मंत्री द्वारा दिया फूल परे पटक दिया और पूछा कि यह किस काम का? क्या वे छात्र इनसे अधिक सभ्य हैं जो अपने होठों पर मुस्कान चिपकाकर भाजपा नेताओं का झूठ सुनते रहे? जिन्होंने बाहर निकलकर कहा कि वे मजबूर थे क्योंकि उन्हें नेता के सामने सिर्फ पॉज़िटिव बात करने को कहा गया था?
यूक्रेन से बचकर अपने दम पर सीमा पारकर निकल आए छात्रों का भारत पहुंचने पर स्वागत करने के लिए संघीय सरकार के मंत्री हवाई अड्डे पर हाथ जोड़े खड़े हैं. बाहर निकलते छात्र इन्हें कायदे से तवज्जो दिए बिना निकले चले जा रहे हैं.
एक जहाज में मंत्री के ‘मोदीजी की जय’ बोलने के आह्वान को भी वे मुस्कुराकर टाल जाते हैं. उनके इस व्यवहार से कई बुजुर्गवार व्यथित हैं. छात्रों में इतना शिष्टाचार हो होना ही चाहिए कि कोई आपका अभिवादन कर रहा हो तो आप उसे स्वीकार करें.
कुछ उनके मां-बाप को उन्हें सही तरबियत न देने पर कोस रहे हैं. कुछ कह रहे हैं कि यह कृतघ्नता है. भले ही यूक्रेन से न सही, सरकार ने बगल के देशों से लाने को तो जहाज भेजे. उन्हें हिम्मत बंधाने मंत्री तक भेजे. इसका तो एहसान उन्हें मानना चाहिए. लेकिन छात्रों के इस उपेक्षापूर्ण बर्ताव से जान पड़ता है कि भारत में संस्कारों की शिक्षा कितनी ज़रूरी है.
कुछ एनसीआरईटी की किताबों को दोष दे रहे हैं, कुछ वामपंथी शिक्षा प्रणाली को, जिसका राष्ट्रीयकरण करना अनिवार्य है.