
क्या प्रधानमंत्री का मज़ाक़ उड़ाना ईशनिंदा है?
The Wire
क्या किसी मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री और सरकार की आलोचना समाज की आलोचना है? क्या भाजपा को यह अहंकार हो गया है कि वही समाज है और जिसे उसने अपना भगवान मान लिया है, वह पूरे समाज का ईश्वर है? उसकी आलोचना, उस पर मज़ाक़ ईशनिंदा है?
सर्वोच्च न्यायालय ने एक बार फिर भारतीय जनतंत्र की लाज बचा ली है. उसने कांग्रेस पार्टी के नेता पवन खेड़ा को अंतरिम जमानत देने का आदेश दिया. उसने उन पर अलग अलग राज्यों में दायर एफआईआर को इकट्ठा करने का हुक्म भी दिया. यह भी कहा कि कि वह खेड़ा के वकील की इस बात से सहमत है कि उनपर जो आरोप है उसके लिहाज़ से एफआईआर में जो धाराएं लगाई गई हैं, वे असंगत मालूम होती हैं.
खेड़ा पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मज़ाक़ उड़ाने का आरोप है. क्या प्रधानमंत्री का मज़ाक़ उड़ाने से सामुदायिक भावना आहत हो सकती है? क्या समाज में इस मज़ाक़ के कारण वैमनस्य फैल सकता है? सबसे बढ़कर यह बात कि क्या प्रधानमंत्री का मज़ाक़ उड़ाने पर किसी को गिरफ़्तार किया जाना चाहिए?
इन सवालों पर हम बात करेंगे लेकिन उसके पहले यह समझना ज़रूरी है कि गिरफ़्तारी से कहीं ज़्यादा महत्त्वपूर्ण है गिरफ़्तारी का तरीक़ा. खेड़ा रायपुर के कांग्रेस के अधिवेशन में शामिल होने के लिए अन्य पार्टी सदस्यों के साथ हवाई जहाज़ पर सवार हो चुके थे. उन्हें झूठ बोलकर जहाज़ से नीचे उतरने को बाध्य किया गया. हवाई पट्टी पर उन्हें कहा गया कि दिल्ली के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी उनसे मिलेंगे. काफ़ी इंतज़ार कराने के बाद उन्हें बतलाया गया कि असम पुलिस ने दिल्ली पुलिस को खबर की है कि वहां उन पर दायर एक एफआईआर के लिए उन्हें पकड़ा जाना है. असम पुलिस की टीम रवाना हो चुकी है. दिल्ली पुलिस असम की बिरादर पुलिस की मदद कर रही थी.
भारत में पुलिस के कामकाज का सारे लोग जानते हैं. एफआईआर होते ही, जो न क़त्ल की है, न किसी सामूहिक हिंसा की, इतनी तत्परता, इतनी फुर्ती कि 1,000 किलोमीटर से भी अधिक का सफ़र तय करके पुलिस की एक पूरी टुकड़ी असम से दिल्ली पहुंच जाए, यह हम सबके लिए हैरतनाक है. लेकिन ऐसा ही नाटक हम कुछ वक्त पहले देख चुके हैं. गुजरात के कांग्रेस विधायक जिग्नेश मेवाणी को प्रधानमंत्री पर व्यंग्य करने के कारण असम पुलिस ने रातोंरात गुजरात पहुंचकर न सिर्फ़ गिरफ़्तार किया बल्कि वह तुरत-फुरत उन्हें जहाज़ में बिठाकर असम ले भी गई. उन पर भी समाज में विद्वेष फैलाने का इल्ज़ाम था.
