
कहानी उन 'मृतकों' की जो कागज़ों में ज़िंदा होने की लड़ाई लड़ रहे हैं
BBC
संपत्ति हड़पने के लालच में जब किसी ज़िंदा शख़्स को कागज़ों में मार दिया जाता है, तब आदमी सच में जीते-जी लाचार हो जाता है. ऐसे ही ज़िंदा पर कागज़ों में 'मृतक' लोगों की है ये कहानी
यदि किसी की मौत हो जाए तो ज़मीन पर उसका मालिकाना हक़ ख़त्म हो जाता है. इसके चलते, भारत में कई ज़िंदा लोगों को भी मृतक के तौर पर पंजीकृत करा दिया गया है. अब ऐसे लोगों की संपत्ति पर दूसरे लोग काबिज हैं. इसका पता जब तक लोगों को होता है, तब तक वे ऐसी मुश्किल में फंस चुके होते हैं, जिससे निकलने के लिए उन्हें बहुत संघर्ष करना होता है. पदेसर यादव जीवित हैं और पूरी तरह से स्वस्थ भी. वे तब अचरज में पड़ गए, जब उन्हें पता चला कि सरकारी काग़ज़ों में उनकी मौत हो चुकी है. पदेसर की उम्र 70 साल से ज़्यादा हो चुकी है. बेटी और दामाद की मौत के बाद उन पर अपने दो नातियों के लालन-पोषण का ज़िम्मा आ गया है. बच्चों की शिक्षा की लिए उन्होंने अपने गांव की कुछ पैतृक ज़मीन को बेच दिया. कुछ महीनों के बाद उनके पास एक टेलीफ़ोन आया. इस फ़ोन के बारे में उन्होंने बताया, "मैंने जिस शख़्स से ज़मीन बेची थी, उसने फ़ोन करके बताया कि आप पर क़ानूनी मुक़दमा हो गया है. उसने बताया कि आपका भतीजा सबको बता रहा है कि आपकी मौत हो चुकी है और किसी धोखेबाज़ ने यह ज़मीन बेची है."More Related News
