कश्मीर में ‘लव जिहाद’ का हौवा महिलाओं को चुनने की आज़ादी से वंचित करने का प्रयास है
The Wire
आज़ादी के सात दशक बाद भी जो औरतें धर्म या जाति की सीमाओं के बाहर जीवनसाथी चुनने का साहस दिखाती हैं, उन्हें परिवार और समाज के साथ पुलिस और नेताओं की प्रताड़ना का शिकार होना पड़ रहा है. वक़्त आ गया है कि महिलाओं द्वारा साथी के चयन को मूल अधिकारों की श्रेणी में शामिल किया जाए और इसकी रक्षा के लिए परिवार, समुदाय, राजनीतिक दलों और राज्य की कट्टरता के विरुद्ध खड़ा हुआ जाए.
भारत के संविधान की रूपरेखा का निर्माण करने वाली समिति में दो महिलाएं भी थीं- हंसा मेहता और राजकुमारी अमृत कौर. उन्होंने ‘प्रत्येक स्त्री के जीवनसाथी चुनने के अधिकार या कम से कम विवाह के लिए के लिए सहमति देने के अधिकार’ को मूल अधिकार बनाने का प्रस्ताव रखा था. पुरुषों के बहुमत वाली समिति में उन्हें इस प्रस्ताव के लिए समर्थन नहीं मिला. आखिरकार संविधान सभा के समक्ष प्रस्तुत किए गए निर्णायक प्रारूप में इस अधिकार को शामिल नहीं किया गया. आजादी के सात दशक बाद भी जो युवतियां अपने धर्म या जाति की सीमाओं के बाहर अपने जीवनसाथी के चयन का साहस दिखाती हैं, परिवार और समाज द्वारा पुलिस, अदालत और नेताओं की सहायता से उनकी प्रताड़ना- कि वे खुद की मर्जी नहीं इनके कट्टर आदेशों को मानें, दुखद है. दूसरे धर्म या जाति से संबंध रखने वाले उनके पुरुष साथियों पर अपहरण बलात्कार या ‘लव जिहाद’ का आरोप लगाकर उन्हें जेल भेज दिया जाता है. यदि विवाहित युगल इसका विरोध करते हैं तो उनके खुद के परिवार द्वारा उनकी हत्या की जा सकती है या भीड़ उन्हें लिंच कर सकती है. हमारी संविधान निर्माताओं- हंसा मेहता और राजकुमारी अमृत कौर ने निश्चित रूप से इससे बेहतर भारत बनाना चाहा होगा. हाल ही में कश्मीर में कुछ सिख महिलाओं के मुस्लिम पुरुषों से विवाह और इस्लाम में धर्मांतरण के फैसले को लेकर विवाद उठ खड़ा हुआ. पंजाब के शिरोमणि अकाली दल के सिख नेताओं ने आरोप लगाया कि यह ‘लव जिहाद’ के आपराधिक मामले हैं.More Related News