इस बैंक के डूबने से आई थी मंदी, क्या फिर बज गई है खतरे की घंटी? भारतीय D-SIB कितने सुरक्षित?
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बैंकिंग संकट की वजह से मंदी आती है तो भारत पर उसका क्या असर पड़ेगा? भारतीय बैंकिंग सिस्टम कितना मजबूत है? भारत में कौन से ऐसे बैंक हैं, जिसके संकट में आने से आप-हम संकट में आ जाएंगे?
साल 2008 में वैश्विक मंदी आई थी. 1929 की महामंदी के बाद यह वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए दूसरा सबसे बड़ा संकट था. मंदी के कई कारण थे. लेकिन लेहमैन ब्रदर्स (Lehman Brothers) बैंक के दिवालिया होते ही मंदी पर मुहर लग गई. पिछले कुछ महीनों से एक बार फिर मंदी की चर्चा जोर पकड़ रही है. जिस तरह से अमेरिका और यूरोप में बैंकिंग संकट पैदा हो गया है, खासकर क्रेडिट सुइस (Credit Suisse) के संकट में फंसने से ग्लोबल मंदी की आशंकाओं को बल मिल रहा है.
क्या दुनिया को ग्लोबल मंदी में धकलने के लिए बैंक एक बार फिर मोहरा बनने वाले है? अगर बैंकिंग संकट की वजह से मंदी आती है तो भारत पर उसका क्या असर पड़ेगा? भारतीय बैंकिंग सिस्टम कितना मजबूत है? भारत में कौन से ऐसे बैंक हैं, जिसके संकट में आने से आप-हम संकट में आ जाएंगे? भारतीय बैंक डूबने से ग्लोबली क्या असर होगा? हालांकि 2008 की मंदी के बाद दुनिया में बैंकिंग सिस्टम को आर्थिक संकट से उबारने के कई प्लान बने हैं. इसी कड़ी में भारत ने बैंकिंग संकट से निपटने के लिए D-SIB बनाया है. आइए जानते हैं कि बैंकिंग सिस्टम के फेल होने से क्या समस्याएं आ सकती हैं?
सवाल: भारतीय बैंकिंग सिस्टम कितना मजबूत है? जवाब: 2008 की मंदी के बाद साल 2015 में RBI ने डोमेस्टिक सिस्टमेटिकली इम्पॉर्टेंट बैंक यानी (D-SIB) की लिस्ट जारी की. फिलहाल इसमें देश के तीन बैंक शामिल हैं. RBI ने SBI, ICICI बैंक और HDFC बैंक को D-SIB में स्थान दिया है.
सवाल: D-SIB क्या है, और इसके लिए बैंक कैसे चुने जाते हैं? जवाब: D-SIB में शामिल बैंकों के डूबने से देश की अर्थव्यवस्था हिल जाएगी, और इनका डूबना सरकार भी सहन नहीं कर सकती. RBI देश के सभी बैंकों को उनकी परफॉर्मेंस, उनके कस्टमर बेस के आधार पर सिस्टमैटिक इम्पॉर्टेंस स्कोर देता है. किसी भी बैंक के D-SIB के तौर पर लिस्ट होने के लिए जरूरी है कि उसकी संपत्ति राष्ट्रीय GDP के 2 फीसदी से ज्यादा हो. मुख्यतौर पर घरेलू अर्थव्यवस्था में महत्व के आधार पर RBI इन बैंकों का चयन करता है.
सवाल: D-SIB भारत के लिए क्यों जरूरी? जवाब: साल 2008 की मंदी के दौरान भारतीय शेयर बाजार तहस-नहस हो गए थे. मंदी को भारतीय बैंक भी नहीं झेल पाए थे. जिससे देश का नुकसान वित्तीय तौर पर बढ़ गया था. तभी सरकार ने तय किया कि ऐसी स्थिति में कुछ चुनिंदा बैंकों को बचाने की जरूरत है, ताकि इकॉनमिक क्राइसिस ना पैदा हो.
सवाल: D-SIB में शामिल बैंकों के लिए कोई खास नियम है? जवाब: D-SIB में बैंकों को भी कुछ नियमों का पालन करना पड़ता है. ये सारा पैसा लोन देने में या बाकी चीजों के लिए इस्तेमाल नहीं कर सकते. इन्हें अपने रिस्क वेटेड एसेट्स का एडिशनल कॉमन इक्विटी टीयर 1 मेनटेन करना होता है. क्योंकि फिलहाल SBI बकेट 3 में है, तो उसे 0.60% और ICICI और HDFC बैंक को 0.20% मेनटेन करना होता है, जो बकेट 1 में है. बैंक की इम्पॉर्टेंस के आधार पर D-SIB को 5 अलग-अलग बकेट्स में रखा जाता है. बकेट फाइव का मतलब सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण बैंक, वहीं बकेट वन का मतलब है कम महत्व वाले बैंक.