इस्लाम में कहानी कहने के लिए ज़मीन ही नहीं है, जानें क्यों बोले उपन्यासकार ख़ालिद जावेद
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उपन्यास ‘नेमतखाना’ के लिए ख़ालिद जावेद को हाल ही में वर्ष 2022 के प्रतिष्ठित जेसीबी पुरस्कार से सम्मानित किया गया. ‘एक खंजर पानी में’,‘आखिरी दावत’, ‘मौत की किताब’, और ‘नेमतखाना’ के लेखक ख़ालिद जावेद विभिन्न पुरस्कारों से नवाजे जा चुके हैं. ख़ालिद जावेद कहते हैं, नियम बनाए गए हैं . इस धर्म में आचार संहिता बहुत ज्यादा है. सांस्कृतिक तत्व बहुत कम नजर आते हैं .
नई दिल्ली: हिंदू धर्म के चरित्रों को आधार बनाकर हिंदी साहित्य लेखन में समय-समय पर कई तरह के प्रयोग किए जाते रहे हैं. साहित्य में धर्म चरित्र के प्रयोग अब भी हो रहे हैं लेकिन इस्लाम धर्म में ऐसी कोई परंपरा क्यों नहीं है? जब यह सवाल उर्दू के जाने माने उपन्यासकार ख़ालिद जावेद से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि इस्लाम धर्म में कहानी कहने के लिए ज़मीन ही नहीं है.
नेमतखाना के लिए मिला पुरस्कार 2014 में लिखे गए अपने उपन्यास ‘नेमतखाना’ (द पैराडाइज आफ फूड) के लिए ख़ालिद जावेद को हाल ही में वर्ष 2022 के प्रतिष्ठित जेसीबी पुरस्कार से सम्मानित किया गया. इस मौके पर उन्होंने एक इंटरव्यू दिया है. ‘एक खंजर पानी में’,‘आखिरी दावत’, ‘मौत की किताब’, और ‘नेमतखाना’ के लेखक ख़ालिद जावेद विभिन्न पुरस्कारों से नवाजे जा चुके हैं और न केवल भारत बल्कि पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में बड़े चाव से पढ़े जाते हैं .
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