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इमरजेंसी के वक्त मैं कहां था? वहीं, जहां आज भी खड़ा हूं

इमरजेंसी के वक्त मैं कहां था? वहीं, जहां आज भी खड़ा हूं

The Quint
Saturday, June 26, 2021 09:56:27 AM UTC

emergency indira gandhi:इमर्जेंसी के वक्त मैं कहां था? वहीं, जहां आज भी खड़ा हूं. जेपी आंदोलन सफल हुआ. मैं इंदिरा गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी से भी मिला. Where was I during emergency? Indira gandhi congress and bjp whataboutery

आज कल एक नया सवाल फेंका जाता है कि तुम तब कहां थे. अंग्रेजी में कहते हैं - व्हाटअबाउटरी (whataboutery) .भारत में आपातकाल (Emergency) की बरसी के मौके पर मैं भी सोचता हूं कि बता दूं कि तब मैं कहां था, तब मैंने क्या किया और मुझे क्या क्या कष्ट सहने पड़े. निरंकुश राजसत्ता से एक नामालूम लड़ाईतब मैं स्कूल में था. तब के बिहार का कस्बा साहिबगंज जो अब झारखंड में है. परिवार कारोबारी था. मैं सबसे छोटा था और बड़े भाई मशक्कत करते और पढ़ाई भी. मंझले भइया सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता वाले काम भी करते. जेपी आंदोलन के दिन थे. किशोरावस्था में ये आंदोलन पूरे देश को लोकतंत्र और राजनीति की नई पाठशाला बन गया था कई बड़ी बातें हम अन्यथा न सीख पाते, वो सीखने को मिलीं.तो इमरजेंसी के ठीक पहले शहर के नागरिकों की समिति की एक बैठक में हमारे मंझले भैया ने SDO (सबडिविजनल ऑफिसर या मजिस्ट्रेट) साहब के सामने किरासन तेल की कमी और इसकी कालाबाजारी की शिकायत कर दी. SDO साहब को ये शिकायत राष्ट्रीय नागवार गुजरी. इसका पता हमें तब चला जब इमरजेंसी बकायदा आ गई.जब इमरजेंसी लगी तब मैं पहली बार मुंबई घूमने गया हुआ था. इस शहर का खुलापन मुझे गिरफ्त में ले रहा था कि एक अर्जेंट ट्रंक कॉल ने नशा तोड़ा, घर वापस आओ. भैया की गिरफ्तारी का वारंट निकला है. वारंट छोटामोटा नहीं था, डिफेंस इंडिया रूल ( DIR) के तहत निकला था जिसमें जमानत के आसार कम थे. यानी मीसा कानून का छोटा भाई. इत्तफाक से अपना बड़ा भाई किसी काम से उस दिन भागलपुर गया हुआ था तो गिरफ्तारी से बचने के लिए भाई साहिबगंज से फरार ही रहा.ADVERTISEMENTइमरजेंसी में बुरी खबरलेकिन ये “इमरजेंसी” मेरे लिए रोमांचक थी. परिजनों ने तय किया की मिट्ठू फ्लाइट पकड़ के कोलकाता जाएगा. छह हजार रुपये की इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट ली. मुंबई में शोले फर्स्ट डे फर्स्ट शो देखने का अरमान पूरा नहीं हुआ था तो कोलकाता में थर्ड डे शोले देखी फिर पहुंचा साहिबगंज.शहर में परिजन, पड़ोसी और मित्र सब की सलाहों और मदद की भरमार थी - पर सब चुपके चुपके. किसी ने टाउन इंस्पेक्टर से परिचय कराया. नए नए आए थे. मेरी ड्यूटी लगी कि उनसे नियमित मिलने जाना है, व्हिस्की के शौकीन हैं. बोतल छिपा के ले जाना है और डाक बंगले के साइड वाले दरवाजे से लगी खिड़की पर रख देना है. डायरेक्ट टू किचन. व्हिस्की की निरंतर सप...
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