जमानत राशि नहीं होने से रुकी है रिहाई? कैदियों की मदद के लिए सुप्रीम कोर्ट ने दिए 7 निर्देश
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जमानत के बाद भी जमानत राशि के अभाव में जेल में रहने के लिए मजबूर कैदियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सात दिशा निर्देश जारी किए हैं. सुप्रीम कोर्ट नवंबर महीने से ही इसका स्वतः संज्ञान लेकर सुनवाई कर रहा है. सुप्रीम कोर्ट में अब मामले की अगली सुनवाई 28 मार्च को होगी.
जमानत पर रिहाई के आदेश के बावजूद जमानत धनराशि जमा नहीं कर पाने की वजह से जेल में रहने को मजबूर कैदियों को लेकर अब सुप्रीम कोर्ट भी एक्टिव हो गया है. सर्वोच्च अदालत ने इसे लेकर सात दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं. बेल मिलने के बावजूद जेल में रहने की मजबूरी को पर मदद के लिए सरकार के बाद अब सुप्रीम कोर्ट भी आगे आया है.
सुप्रीम कोर्ट की ओर जारी दिशा-निर्देश में कहा गया है कि कोर्ट से किसी विचाराधीन कैदी या फिर दोषी को जमानत पर रिहा करने का आदेश आता है तो उसी दिन या फिर अगले दिन जेल अधीक्षक के माध्यम से कैदी को ई-मेल के जरिए जमानत आदेश की सॉफ्ट कॉपी भेजनी होगी. जेल अधीक्षक को ई-जेल सॉफ्टवेयर या जेल विभाग में इस्तेमाल हो रहे किसी अन्य सॉफ्टवेयर के जरिए जमानत आदेश दिए जाने की तारीख भी दर्ज करनी होगी.
सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा है कि यदि आरोपी को जमानत पर रिहा कर देने के आदेश के दिन से सात दिन की अवधि में रिहा नहीं किया जाता है तो यह जेल अधीक्षक का कर्तव्य होगा कि वे जिला विधिक सेवा प्राधिकरण यानी DLSA के सचिव को सूचित करें. डीएलएसए कैदी की रिहाई के लिए हर संभव तरीके से उसकी सहायता, बातचीत करने के लिए पैरा लीगल वालंटियर या जेल विजिटिंग एडवोकेट को नियुक्त कर सकता है.
सर्वोच्च अदालत ने कहा है कि नेशनल इन्फॉर्मेटिक्स सेंटर यानी एनआईसी ई-जेल सॉफ्टवेयर में आवश्यक फील्ड बनाने का प्रयास करेगा ताकि जेल विभाग की ओर से जमानत आदेश की तारीख और जमानत पर रिहाई की तारीख दर्ज की जा सके. इससे ये डेटा भी रहेगा कि आदेश और अनुपालन में कितना वक्त लगता है. यदि कैदी सात दिन के भीतर रिहा नहीं होता है तो एक स्वचालित ई-मेल सचिव, DLSA को भेजा जा सकता है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सचिव, DLSA अभियुक्तों की आर्थिक स्थिति का पता लगाने के लिहाज सेपरिवीक्षा अधिकारियों या पैरा लीगल वालंटियर्स की मदद ले सकता है. इससे कैदी की सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर एक रिपोर्ट तैयार की जा सकेगी. इससे संबंधित न्यायालय के समक्ष जमानत की शर्तों में ढील देने के अनुरोध के साथ रखा जा सकेगा.
अस्थायी जमानत पर भी विचार
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