कत्लेआम का शौकीन वो तानाशाह, जिसकी वजह से अमीर हिंदुस्तानियों को रातोरात एक सूटकेस लेकर भागना पड़ा
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अफ्रीकी देश युगांडा में 60 के दशक में भारतीय कारोबारियों का रुतबा था. देश की इकनॉमी उनके भरोसे चलती थी. यही बात वहां के तानाशाह ईदी अमीन को पसंद नहीं आई. उसने न सिर्फ हिंदुस्तानियों को बाहर भेजा, बल्कि अपने ही लोगों को मरवाने लगा. अमीन का राज छिनने के बाद देश में जहां-तहां सामूहिक कब्रें मिलीं, जिसमें किसी के सिर तो किसी के हाथ-पैर गायब थे.
युगांडा के तानाशाह ईदी अमीन ने अपनी तानाशाही के दौरान भारतीय मूल के करीब 80 हजार लोगों को देश से बाहर चले जाने का फरमान सुना दिया. हर परिवार को, चाहे वो जितना ही बड़ा हो, सिर्फ दो सूटकेस और 50 पाउंड ले जाने की इजाजत थी. ये वो परिवार थे, जिनके पास अरबों-खरबों की दौलत थी, लेकिन आनन-फानन उन्हें देश छोड़कर भागना पड़ा. आज ही का दिन था, जब ईदी अमीन ने खुद को युगांडा का भगवान घोषित किया और उसके बाद से दमन का जो दौर चला, उसके ढेर सारे राज काफी बाद में खुले.
किताब में उस दौर का हिसाब-किताब उनके समय में देश के हेल्थ मिनिस्टर रह चुके नेता हेनरी क्येम्बा ने एक किताब लिखी. 'स्टेट ऑफ ब्लड- द इनसाइड स्टोरी ऑफ ईदी अमीन' में बताया गया है कि अमीन की हुकूमत जाने के बाद देश में कई जगहों पर सामूहिक कब्रें मिलीं. जिनके बारे में माना जाता था कि ये अमीन की ही करतूत है. ज्यादातर के ऑर्गन्स गायब थे. ऐसा क्यों था, ये किसी को नहीं पता, लेकिन शक की सुई अमीन की तरफ घूमी कि उसने ही फौज को इस बर्बरता का आदेश दिया होगा.
युगांडा में हिंदुस्तानी मूल के लोग कैसे पहुंचे 19वीं सदी के आखिर में अफ्रीका के इस हिस्से पर ब्रिटेन का राज हो चुका था. अब नस्लवादी अंग्रेजी हुकूमत सीधे-सीधे अफ्रीकी लोगों से घुलना-मिलना चाहती नहीं थी, तो उसने एशियाई मूल के लोगों को वहां लाकर बसाना शुरू कर दिया. इनमें भारतीय भी थे, जिनका काम था अंग्रेजों और अफ्रीकी लोगों के बीच कड़ी का काम करना. इसके बदले में अंग्रेज उन्हें कारोबार करने की इजाजत देते थे. लेकिन इसी में वे बुरे फंसने लगे. युगांडा के लोग हिंदुस्तानी लोगों से भी शासक की तरह नफरत करते. वे मानते थे कि हमारे यहां आकर ये लोग हमारी जमीनों और बिजनेस पर कब्जा कर रहे हैं.
भारतीयों को कहा जाता था ब्राउन मास्टर साठ के दशक में युगांडा ब्रिटेन से आजाद हो गया लेकिन यहीं से हिंदुस्तानियों की मुश्किलें बढ़ने लगीं. दोनों समुदायों के बीच कड़वाहट काफी बढ़ चुकी थी. न भारतीय मूल के लोग अफ्रीकी लोगों से घुल-मिल सके, न ही मूल अफ्रीकी लोगों को भारतीय पसंद थे. भारतीयों को वहां व्यंग्य और डर से ब्राउन मास्टर कहा जाता. बिजनेस में भी भारतीयों का रुतबा लगातार बढ़ रहा था, जिससे युगांडा में गुस्सा और बढ़ा. उन्हें लगता था कि आजादी के बाद भी वे गुलाम के गुलाम ही रहे. यहीं पर पिक्चर में ईदी अमीन आए.
अमीन ने कर दिया तख्तापलट युगांडा के एक इस्लामिक कबीले से जुड़े अमीन सेना में रसोइये का काम करते. अपने भारी-भरकम शरीर और तानाशाही अंदाज के चलते जल्द ही प्रमोशन पाते हुए वे सेनाध्यक्ष बन गए. तब राष्ट्रपति मिल्टन ओबोटे का कार्यकाल था. सरकार करप्शन के आरोपों से घिरी हुई थी. इधर सेना में भारी लोकप्रिय हो चुके अमीन ने मौके का फायदा उठाया और तख्तापलट कर दिया. सेना के कुक से वे युगांडा के राष्ट्रपति बन चुके थे.
भारतीयों को मिला अल्टीमेटम अपने लोगों की भावनाएं समझते हुए अमीन ने रातोरात एशियाई मूल, खासकर हिंदुस्तानियों को देशनिकाला दे दिया. कॉलेज में पढ़ने वाले भारतीयों को डराने के लिए सेना के टैंक भेजे जाने लगे. वहां भारी बूट पहने अफ्रीकी सैनिक लोगों को डराते और अपने देश लौटने के लिए धमकाते. बिजनेस डूबने लगे. अगस्त 1972 में अमीन ने भारतीयों को देश खाली करने के लिए 3 महीने का नोटिस दे दिया. साथ में ये आदेश भी कि वे सिर्फ 2 सूटकेट और 50 पाउंड साथ ले जा सकते हैं. लोग दशकों की अपनी मेहनत को यूं ही छोड़कर भागने लगे. बहुत से लोगों ने कनाडा, ब्रिटेन और अमेरिका में शरण ली. इसके बाद भारतीय व्यावसायियों से खाली हुए देश की इकनॉमी एकदम से चरमरा गई.
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